For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बिंदिया [लघु कथा ]

मीनू की डोली जब प्रशांत के घर के आगे रुकी तो दरवाजे पर पूजा की थाली लिए शिखा खड़ी थी | शिखा ने आगे बढ़ कर अपने प्यारे भैया प्रशांत और अपनी प्यारी सखी जो आज दुल्हन बनी ,भाभी के रूप में उसके सामने  खड़ी थी ,आरती उतार कर स्वागत किया |बर्तन में भरे हुए चावल को अपने पैर से बिखराते हुए ,पूरे रीति रिवाज के अनुसार मीनू ने अपने ससुराल में प्रवेश किया |पूरा घर खुशियों से चहक उठा ,शिखा ने मीनू को गले लगाते हुए कहा ,''आज तुम्हारा पांच साल से परवान चढ़ता हुआ प्रेम सफल हुआ ,मै जानती हूँ तुम और प्रशांत भैया दो जिस्म एक जान हो ,तुम एक दूसरेके बिना रह ही नही सकते ''|जल्दी ही मीनू अपने ससुराल में घुल मिल गई ,खासतौर से शिखा के साथ उसकी दोस्ती और भी गहरी हो गई |समय कब पंख लगा कर उड़ जाता है ,मालूम ही नही पड़ता ,दिन महीने और साल पर साल गुजरने का एहसास ही नही हुआ मीनू को ,फिर पता नही किसकी नजर लग गई और दबे पाँव अनहोनी ने उसकी प्यारी सी जिंदगी में दस्तक दे दी ,प्रशांत की एक कार दुर्घटना में मौत हो गई |मीनू की जिंदगी में घनघोर अँधेरा छा गया ,सारा सारा दिन प्रशांत की यादों में निकल जाता और राते तो कटने का नाम ही नही लेती ,रो रो कर आंसू भी सूख गये थे |शिखा भी अपने भाई को भूल नही पा रही थी ,जब भी वह मीनू को देखती उसकी आँखें मीनू के सूने माथे पर ही अटक  कर रह जाती ,जहाँ कभी दमकती  लाल रंग की बिंदिया मीनू की सुन्दरता की और भी निखार देती थी ,''नही नही ,मै मीनू की यूं घुट घुट कर जीने नही दूंगी ,उससे बात करनी ही होगी ,''और एक दिन उसने मीनू से दूसरी शादी की बात छेड़ दी , शिखा की बात सुन कर मीनू को जोर का झटका लगा ,तड़प उठी वह ,''शिखा  मै तुमसे बहुत प्यार करती हूँ ,तुम्हे उस प्यार की कसम ,जो आज के बाद तुमने यह बात दुबारा कही,तुम ही तो जानती हो कि तुम्हारे भैया से मै कितना प्यार करती हूँ ,किसी और के बारे में सोचना भी मेरे लिए पाप है ,चाहे वह आज  शारीरिक रूप से मेरे साथ नही ,लेकिन मै सिर्फ और सिर्फ प्रशांत की हूँ ,वह हर पल मेरे दिल में रहते है ,मै अपने से उनकी यादें दूर नही कर सकती |शिखा उसकी प्रिय सखी होने के नाते उसकी मनोदशा अच्छे से समझ रही थी ,''ठीक है मीनू ,मै तुम्हें समझ सकती हूँ ,लेकिन तुम्हे भी मेरी एक बात तो माननी ही होगी ,''शिखा ने मेज से बिंदियों का एक पत्ता उठाया और लाल रंग की एक बिंदी निकाल कर मीनू के सूने  माथे पर लगा दी ,''यह बिंदिया मेरे भैया के उस प्यार के लिए ,जिसे तुम अब भी महसूस करती हो |मीनू अवाक खड़ी देखती रह गई |

Views: 1408

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rekha Joshi on June 29, 2012 at 1:24pm

आदरणीय राज़ जी ,सादर 

उत्साहवर्धक कमेन्ट देने के लिए आपका शुक्रिया ,आगे भी स्नेह बनाये रखें 
Comment by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 12:43pm

जीवन पे अनावश्यक रूप से लादी गई प्रथाओं को तोडती एक ह्रदयस्पर्शी लघुकथा. सचमुच, जीवन के दुःख भरे अनुभवों की तस्वीर सजाके जीने की क्या ज़रूरत है? बधाई हो! 

Comment by Rekha Joshi on June 21, 2012 at 4:21pm

सुरेन्द्र जी ,जन्मदिन पर आपकी बधाई स्वीकार है ,आपने मुझे याद रखा ,आपका आभार 

Comment by Rekha Joshi on June 21, 2012 at 4:18pm

सूरज जी ,आपको रचना पसंद आई ,आपका शुक्रिया 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 20, 2012 at 11:13pm

बहुत मार्मिक कहानी है रेखा जी ! काश ऐसे परिवार वाले सभी के साथ ऐसा व्यवहार करे और प्यार का माहौल बने ! बधाई हो !!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 20, 2012 at 9:12pm
आदरणीया रेखा  जी जन्म दिन की अग्रिम रूप से बधाई ...ये खुशियों भरा पल बार बार आये ...आता रहे ...मुबारक हो प्रभु आप को सारी खुशियाँ और मन का सुकून दें ..आप यों ही समाज को रोशन करती रहें ...जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 
Comment by Rekha Joshi on June 20, 2012 at 10:58am

आदरणीय सुरेन्द्र जी ,आपको कथा पसंद आई ,शुक्रिया ,आगे भी आप ऐसे ही उत्साह बढ़ाते रहें ,आभार ,

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 20, 2012 at 12:08am

आदरणीया रेखा जी भावनाओ के सागर  में गोता लगवा दिया आप ने ..अच्छी कहानी ...ऐसा भी होता है और सब कुछ बना भी रह सकता है 

भ्रमर ५ 
Comment by Shubhranshu Pandey on June 12, 2012 at 2:27pm

कितनी सरलता से एक बिन्दिया ने भावनाओं को सम्भाला.......

Comment by Rekha Joshi on June 10, 2012 at 11:50am

Kumar Gaurav ji protsahn ke liye dhnyvaad

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service