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भूला कहाँ हूँ कच्चा घर अपने गाँव का

भूला कहाँ हूँ कच्चा घर अपने गाँव का ||
जो बना था लकड़ी का दर अपने गाँव का ||

थी वो महकती मिटटी और वो कच्ची गली ,
घूमे  ख़्यालों में  मंज़र अपने  गाँव का ||

आँखे हुई नम , देखकर  पानी  बरसात  का ,
जो याद आये जोहड़ अक्सर अपने गाँव का ||

जब गाँव छोड़ा तो वालिद समझाए मुझे ,
झुकने न देना कभी तुम, सर अपने गाँव का ||

कैसी हवा आई है ये  मगरिब से "नजील ",
मुझको सताए है अब डर अपने गाँव का ||


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Comment

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Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 4, 2012 at 7:11pm
आपने गांव का भाव पूर्ण चित्रण किया है
नजील जी।बधाई स्वीकार कीजिए।अब
गांव कुछ-कुछ बदलने लगा
है।
Comment by Nazeel on March 4, 2012 at 12:38pm

सही फ़रमाया आनंद जी आपने कोशिशे कभी अदनी नहीं होती ......क्योंकि कोशिश से ही हम कुछ प्राप्त कर सकते हैं .....:-)

Comment by Nazeel on March 4, 2012 at 12:37pm

धन्यावाद मृदु  जी ...... उत्साहित करने हेतु हार्दिक आभार .......

Comment by Nazeel on March 4, 2012 at 12:36pm

धन्यावाद प्रदीप कुमार सिंह  जी ...... उत्साहित करने हेतु हार्दिक आभार .......

Comment by Nazeel on March 4, 2012 at 12:35pm

धन्यावाद वाहिद  जी ...... उत्साहित करने हेतु हार्दिक आभार .......

Comment by Nazeel on March 4, 2012 at 12:34pm

धन्यावाद बागी जी ...... उत्साहित करने हेतु हार्दिक आभार .........मेरे ख्याल से जो अपनापन गाँव के जीवन में है वो शहरी जीवन में  नहीं

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 4, 2012 at 9:51am

गाँव की मिट्टी से जुड़े ख़ूबसूरत जज़्बात की पेशगी पर बधाई नज़ील साहब|

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 3, 2012 at 10:29pm

कैसी हवा आई है ये  मगरिब से "नजील ",
मुझको सताए है अब डर अपने गाँव का ||

बहुत सुंदर भाव, प्रस्तुति. बधाई.

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 3, 2012 at 10:24pm

थी वो महकती मिटटी और वो कच्ची गली ,
घूमे  ख़्यालों में  मंज़र अपने  गाँव का ||

अच्छी ग़ज़ल की प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 3, 2012 at 9:16pm

खुबसूरत अशआर कहे है नज़ील जी, गाँव की बात ही न्यारी है, अच्छी ग़ज़ल की प्रस्तुति पर दाद कुबूल करें |

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