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सामान उठाते हैं

अब लौट के जाते हैं

दिल मेरा दुखाने को

अहबाब भी आते हैं

ये चाँद-सितारे भी

रातों को रुलाते हैं

जो टूट के मिलते थे

वो रूठ के जाते हैं

मैं उनका निशाना हूँ

वो तीर चलाते हैं

हम अपनी उदासी को

हँस-हँस के छुपाते हैं

की ख़ूब अदाकारी

पर्दा भी गिराते हैं

.......दीपक कुमार

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Comment

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Comment by दीपक कुमार on January 25, 2012 at 5:44pm

shukriya Brij bhusan choubey ji !!

Comment by Brij bhushan choubey on January 25, 2012 at 2:24pm

हम अपनी उदासी को

हँस-हँस के छुपाते हैं  lajvab rachna .

Comment by दीपक कुमार on January 24, 2012 at 7:21pm

dhanyawaad Raj Lally Ji..!!

Comment by राज लाली बटाला on January 23, 2012 at 9:40pm

khoob hai ji !! 

ये चाँद-सितारे भी

रातों को रुलाते हैं

Comment by दीपक कुमार on January 22, 2012 at 10:26am

वीनस केशरी bhai, shukrguzaar hoon apka..!!

Comment by दीपक कुमार on January 22, 2012 at 10:24am

aadarniya Saraubh Pandey ji, bahut-bahut Dhanyawaad !! koshish karoonga OBO par niyamit aataa rahoon.

Comment by वीनस केसरी on January 15, 2012 at 8:40pm

जो टूट के मिलते थे

वो रूठ के जाते हैं

वाह दीपक जी
क्या कहने
छोटी बह्र को आपने खूबसूरती से निभाया है


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 13, 2012 at 8:42pm

विशेष प्रभाव से आपने कहन को दमदार बना दिया है, दीपकजी. प्रस्तुत पंक्तियों पर विशेष साधुवाद.

ये चाँद-सितारे भी

रातों को रुलाते हैं ..

 

मैं उनका निशाना हूँ

वो तीर चलाते हैं

प्रविष्टियों से सहयोग बनाए रखें. .. बधाइयाँ.

 

Comment by दीपक कुमार on January 13, 2012 at 8:41pm

धन्यवाद अभिनव जी..!!

Comment by Abhinav Arun on January 13, 2012 at 8:32pm

"मैं उनका निशाना हूँ

वो तीर चलाते हैं"  +

"की ख़ूब अदाकारी

पर्दा भी गिराते हैं"

बहुत खूब ! अच्छे शेर कहे हैं हार्दिक बधाई दीपक जी !!

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