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मै चलने के लिए बना था मै उड़ न सका

रुकना साँस लेना मेरी ज़रूरत थी
जब भी मै रुका
दुनिया ने कहदिया मै पीछें रह गया
मै चलने के लिए बना था
वो कहते रहे मै उड़ न सका
 
विचार बीज थे
मै मिट्टी था
दुनिया से अलग सोचता
मै मिट्टी था
बारिश की बूदों पड़े तो मै खुशबू
सूरज की रोशनी में जादू
की विचारों में जिंदगी भर दू
उपजाऊ था
पर था तो मै मिट्टी ही
कइयो ने समझाया
सोना होना ज़रुरी है
मिट्टी का नहीं है मोल
सोना है अनमोल
मुझे खलिहानोँ में होना था
बारिश धुप में भिगोना था
पर भट्टी में जलाया गया मुझे
की लोगो की चाह में सोना था
पर मै मिट्टी था
मुझे मिट्टी ही होना था
मै चलने के लिए बना था
मै उड़ न सका
 
क्या सोना होना इतना ज़रुरी है
क्या सोना फसल बनेगा
क्या सोना पेट भरेगा
क्या सोना आस्मा से बरसेगा
और बीजो में जीवन भरेगा
सोना कीमती है
पर मै भी हू अनमोल
पर मुझे इतना तपाया गया
की मै मिट्टी भी न रह सका
विचार मेरे जल गए
नसों में लड़ने की कूबत थी
सब भाप बन निकल गए
मै चलने के लिए बना था
मै उड़ न सका
 
सासे लेना धडकना
दुनिया के रंग रंगना चहकना
ये मेरी ताकत थी
पर उसे समझ ना आया
जब भी तोला मुझे
उसने सोने के सिक्को से
हमेशा कम पाया
मै चलने के लिए बना था
मै उड़ न सका
 
: शशिप्रकाश सैनी

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Comment

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Comment by shashiprakash saini on January 6, 2012 at 5:15pm

धन्यवाद नीलम जी 

Comment by Neelam Upadhyaya on January 6, 2012 at 10:12am

तथ्यो से भरीऔर संदेश देती बहुत ही शानदार रचना के लिए बहुत बधाई. कुछ स्थानो पर वर्तनी संबंधी अशुद्धियाँ थोड़ी अखरती है.

Comment by shashiprakash saini on January 2, 2012 at 10:23pm

सराहना के लिए आभार आदरणीय अरुण जी 

Comment by Abhinav Arun on January 2, 2012 at 10:00pm
शानदार और सन्देश परक रचना के लिए हार्दिक बधाई शशि प्रकाश जी | इन पंक्तियों की ताकत को नमन है गहरे भाव हैं इनमें -
मिट्टी का नहीं है मोल
सोना है अनमोल
मुझे खलिहानोँ में होना था
बारिश धुप में भिगोना था
पर भट्टी में जलाया गया मुझे
... पर मै मिट्टी था
मुझे मिट्टी ही होना था
मै चलने के लिए बना था
मै उड़ न सका
हार्दिक बधाई आपको !
Comment by shashiprakash saini on December 29, 2011 at 1:01pm

धन्यवाद सौरभ सर आपकी बात को ध्यान में रखूँगा 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 29, 2011 at 10:50am

अवस्था और तदनुरूप मनोदशा विशेष के अवसाद को उत्कीर्ण करती रचना. 

इस तरह की कविता में संयत रहना बहुत ही आवश्यक है. टंकण त्रुटियों या अक्षरी-अशुद्धि से बचा जाना उतना ही आवश्यक है.

 

रचना प्रस्तुतिकरण पर मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ.

 

Comment by shashiprakash saini on December 29, 2011 at 10:22am

हौसला आफजाई के लिए शुक्रिया गणेश जी 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 29, 2011 at 10:13am

//

पर मुझे इतना तपाया गया
की मै मिट्टी भी न रह सका
विचार मेरे जल गए
नसों में लड़ने की कूबत थी
सब भाप बन निकल गए
मै चलने के लिए बना था
मै उड़ न सका//
आदरणीय सैनी साहब, आपकी कविता बहुत ही संदेशपरक है, ईश्वर ने कुछ भी निरर्थक नहीं बनाया है, यदि उन्होंने किसी को धरती पर भेजा है, चाहे किसी भी रूप में तो अवश्य ही कुछ प्रयोजन होगा, सबका अपना अलग महत्व है, सोना और चैन से सोने में बहुत ही फर्क है, सोना से पेट नहीं भरा करता, 
कुल मिलाकर एक बहुत ही तथ्यपरक रचना की प्रस्तुति है, बहुत बहुत बधाई आपको |
 

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