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कुछ तो हूँ कुछ नहीं हूँ मैं

कुछ तो हूँ कुछ नहीं हूँ मैं
चंद लम्हों कि रुत नहीं हूँ मैं


मुझको सजदा करो ना पूजो तुम
संगमरमर का बुत नहीं हूँ मैं |


मेरे नीचे है अँधेरे का वजूद
शाम से पहले कुछ नहीं हूँ मैं |


यूँ ना तेवर बदल के देख मुझे
जिंदगी तेरा हक नहीं हूँ मैं |


बेखुदी में तपिश ये आलम है
वो खुदा है तो खुद नहीं हूँ मैं |

मेरे काव्य संग्रह ---कनक ---से

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 29, 2010 at 10:38am
बहुत खूब भाई साहब, अच्छी नज्म पेश किया है आपने, धन्यवाद,
Comment by आशीष यादव on August 29, 2010 at 12:15am
jagdishtapish ji saadar pranam,
bahut hi sundar shero se susajjit ye ghazal, bahut hi sundar lagi.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 28, 2010 at 11:12pm
बहुत सुन्दर ...सभी शेर एक से बढ़कर एक हैं|

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