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ग़ज़ल

122 122 122 122

जो ख्वाबों ख़यालों में खोए रहेंगे |

सहर के अँधेरे डराने लगेंगे ||1

बनोगे जो धरती के चाँद सूरज |

तो सातों फ़लक सर झुकाने लगेंगे ||2

मुहब्बत ज़माने से जो बेख़बर है |

बशर देख ताने सुनाने लगेंगे ||3

खुदा की तमन्ना जो करते चलोगे |

फ़लक के सितारे लुभाने लगेंगे ||4

हमें जिंदगी से अदावत मिली है |

इशारे हमें अब डराने लगेंगे ||5

लिखेंगे जुदाई के नगमें कभी जो |

वही तीर बन के सताने लगेंगे ||6

बढ़े हौंसले रास आने लगे हैं |

अँधेरे में दीपक जलाने लगेंगे |7

वो शफ्फाक किरणें ग़ज़ल गा रहीं हैं |

कुहासे घनेरे छकाने लगेंगे ||8

कमी ग़र किसी की कभी तुम दिखाओ |

वो आँखें तुम्हें तो दिखाने लगेंगे ||9

वो शामों-सहर है मुकद्दर बना यूँ |

उसी आग में हम नहाने लगेंगे ||10

तुम्हारी जो नफरत बढ़ाने लगे हैं |

वही आइने दिल दुखाने लगेंगे ||11

बड़ी ही अनोखी मुलाकात है ये |

वो तीरे नज़र के निशाने लगेंगे ||12

जिसे ख्वाब में रोज देखा किए थे |

उसे घर की जीनत बनाने लगेंगे ||13

ये कमजर्फ कैसी मुहब्बत हुई है |

हवस ही ज़मानत जताने लगेंगे ||14

अलामत तरस पैरहन मुहब्बत हुई है |

अकीदे की चादर बिछाने लगेंगे ||15

सदाकत रफाकत मुहब्बत करोगे |

अजीयत विरह की जताने लगेंगे ||16

वो गम-ए-दहर को मिला एक मंजर|

सहर-ए-हयात जगाने लगेंगे ||17

हिकारत कभी जो मुहब्बत बनेगी |

नज़र वो हमीं से चुराने लगेंगे ||18

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2023 at 3:57pm

आ. अनीता जी, सादर अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा है पर यह और समय चाहती है। कुछ सुझाव के साथ फिलहाल इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।

/बनोगे जो धरती के चाँद सूरज |//यह मिसरा बह्र में नहीं है।
बनोगे जो भू के कभी चाँद सूरज" या
बनोगे धरा के अगर चाँद सूरज

वो आँखें तुम्हें को दिखाने लगेंगे ||9

बढ़ाते हैं नफरत अभी जो तुम्हारी

कि तीरे नज़र के निशाने लगेंगे ||12

जिसे ख्वाब में रोज देखा किए हम |

//अलामत तरस पैरहन मुहब्बत हुई है |/

सहर-ए-हयात जगाने लगेंगे ||17

ये मिसरे भी बह्र में नहीं है।

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