For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इक कमरे का है ये मकाँ...

यहाँ आदमियों की जगह नहीं,

खाने को दो दिनों की भूख है

पीने को रिस-रिसकर बहता पानी

बेरंग सी दीवारों की मुन्तज़िरी,

औ छत की रोती सी दीवारें

गोशों में बिखरा साजो-सामान

टूटे फर्श के टुकड़े निहारें

इमकान-ए-आसूदगी के पैबंद लगी,

अजीयत की लम्बी चादरें...

कहीं तो जाके ख़तम हों,

ये सोज़-ओ-खलिश की कतारें

अधूरे से पड़े ख्वाब

और न ही चाहतें हैं,

मलबूस-ए-गरीब तो

खामोश ग़मों की आहटें हैं

खुशनुमे कल की उम्मीद है बस...

जीते रहने की और वज़ह नहीं

इक कमरे का है ये मकाँ......




( मुन्तज़िरी= इंतजारी; गोशों= कोनों; इमकान-ए-आसूदगी= ख़ुशी की संभावनाएं; अजीयत= तकलीफ; सोज़-ओ-खलिश= दुःख और उलझन; मलबूस-ए-गरीब= गरीब व्यक्ति का लिबास)

Views: 484

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on September 6, 2010 at 5:42pm
सुन्दर नज़्म|
ब्रह्माण्ड
Comment by Babita Gupta on March 22, 2010 at 3:49pm
Bahut hi khubsurat kriti hai, vivek ji aapney achha likha hai aur bhi kavita likhiyey badhiya likh rahey hai.
Comment by Rash Bihari Ravi on March 15, 2010 at 4:40pm
khubsurat manmohak
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on March 14, 2010 at 11:59am
waah vavek bhai..bahut badhiya dil khush ho gail raur ee rachna padh ke.....etna badhiya lines ke saja ke ek jagah rakh dele bani.....bahut badhiya.....composing kare ke tarika bahut badhiay baa raur....humni ke aasha baa ki aage bhi aisan rachna raur aawat rahi aur humni ke padhe ke milat rahi.........

ek baar fer se kahab waah bhai waah....lagal rahi ehi tarah

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 12, 2010 at 8:46am
खामोश ग़मों की आहटें हैं

खुशनुमे कल की उम्मीद है बस...

जीते रहने की और वज़ह नहीं
Wah wah Vivek bhai kya kamal ki aapki rachna hai, bahut hi khubsurat paktiyo sey saji yey aapki kavita dil ko chhu leney wali hai.
Comment by Admin on March 12, 2010 at 8:34am
खाने को दो दिनों की भूख है

पीने को रिस-रिसकर बहता पानी

विवेक जी आपने बहुत ही खुबसूरत , सच्चाई के नजदीक और दिल को छु जाने वाली कविता लिखा है, बहुत बहुत धन्यवाद .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
8 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
10 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service