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दृश्य देखकर वृद्धाश्रम का,
रूह मेरी सिहर उठी।
क्यूं उन निर्दयी औलाद ने,
फ़र्ज़ का गला घोंट दिया।।

लाड़ प्यार से पाला जिनको,
बच्चों पर सर्वस्व लूटा दिया।
क्यों ऐसी ममता के साए को
निर्दयी औलाद ने भुला दिया।।

क्यूं कदम नहीं लड़खड़ाए उसके,
जब ऐसा उसने कृत्य किया।
क्यूं भूल गया वो उनका एहसान,
जिसने उसको अपना नाम दिया।।

आँख के तारे को बूढ़ी आँखों का ,
क्यूं दर्द दिखाई नहीं दिया।
फर्ज निभाने के समय
क्यूं फ़र्ज़ से पल्ला झाड़ लिया।।

आज जहां पर तू खड़ा ,
कल तेरा अंश खड़ा होगा।।
एक बार तो सोचा होता तूने,
ये जीवन का पहिया घूम रहा ।

"मौलिकऔर अप्रकाशित"

नीता तायल

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Comment by Neeta Tayal on September 3, 2020 at 8:28am

आप सभी का बहुत बहुत आभार,ऐसे ही आगे प्रोत्साहित करते rahiyega plz

Comment by Dimple Sharma on September 2, 2020 at 4:02pm

आदरणीया नीता तयाल जी नमस्ते, खुबसूरत रचना पर बधाई स्वीकार करें आदरणीया।

Comment by Samar kabeer on August 28, 2020 at 7:38pm

मुहतरमा नीता जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

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