For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सामयिक षटपदियाँ:
संजीव 'सलिल'
*
मानव के आचार का स्वामी मात्र विचार.
सद्विचार से पाइए, सुख-संतोष अपार..
सुख-संतोष अपार, रहे दुःख दूर आपसे.
जीवन होगा मुक्त, मोहमय महाताप से..
कहे 'सलिल' कुविचार, नाश करते दानव के.
भाग्य जागते निर्बल होकर भी मानव के..
***
हार न सकती मनीषा, पशुपति दें आशीष.
अपराजेय जिजीविषा, सदा साथ हों ईश..
सदा साथ हों ईश, कैंसर बाजी हारे.
आया है युवराज जीत, फिर ध्वज फहरा रे.
दुआ 'सलिल' की, मौत इस तरह मार न सकती.
भारत माता साथ, मनीषा हार न सकती..  
*
शीश काटना उचित जब, रहे सामने युद्ध.
शीश झुकाना उचित यदि, मिलें सामने बुद्ध..
शुद्ध ह्रदय से कीजिए, मन में तनिक विचार.
शांति काल में शीश, क्यों काटें- अत्याचार..
दंड न अत्याचार का, दें- हों कुपित शशीश.
बदले में ले लीजिए, दुश्मन के सौ शीश..
*                 
***

Views: 451

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by sanjiv verma 'salil' on January 24, 2013 at 7:11pm

राजेश जी, राम शिरोमणि जी, लक्ष्मण जी, प्रदीप जी
आपका आभार त्वरित प्रतिक्रिया हेतु.

कहे 'सलिल' कुविचार, नाश करते दानव के.
भाग्य जागते निर्बल होकर भी मानव के..
कुविचार के कारण दानवों का नाश होता है तथा मानवों का भाग्य जागता है. निहितार्थ चूंकि दानव कुविचारों से ग्रस्त तथा मानव कुविचारों से मुक्त रहते हैं.

सत्य ही मैं प्रतिदिन कुछ न कुछ सीखने के र्पयास करता हूँ. आभार आप सबका कि आप इसे न केवल बर्धस्त करते हैं अपितु सराहना कर उत्साह भी बढ़ाते हैं.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 24, 2013 at 4:58pm

रोज नया नया सीखने को मिलता है 

आभार 

आदरणीय सलिल जी 

सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 24, 2013 at 4:48pm

समाचार सोपान से प्रेरित विचारों को प्रस्तुत करने पर हार्दिक बधाई 

तीनो ही षट पदियाँ एक से बढ़कर एक,

संजीव सलिल लिखे सदविचार सब नेक ।  

Comment by ram shiromani pathak on January 24, 2013 at 4:33pm

वाह क्या बात है उत्तम अति उत्तम !!

Comment by राजेश 'मृदु' on January 24, 2013 at 4:31pm

शीश काटना उचित जब, रहे सामने युद्ध.
शीश झुकाना उचित यदि, मिलें सामने बुद्ध..  बहुत ही सुंदर संदेश देती रचना

Comment by राजेश 'मृदु' on January 24, 2013 at 4:30pm

कहे 'सलिल' कुविचार, नाश करते दानव के.
भाग्य जागते निर्बल होकर भी मानव के..  सादर नमन आचार्यजी, मैं इन पंक्तियों का अर्थ नहीं निकाल पा रहा हूं, कृपया मार्गदर्शन करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service