For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सोये हो तो जागो - डॉo विजय शंकर

क्या कापुरुषत्व अब
सधे पौरुष का पर्याय बन गया है।
विवेक-शून्य होकर
हाँ में हाँ मिलाना ही
विवेक-शील होने का
एकमात्र प्रमाण बन गया है।

समय के साथ चलिए ,
हमारे साथ आगे बढ़िये ,
भले ही हमारा एहसास
सत्रहवीं शताब्दी का हो ।
समवेत-स्वर में गाइये,
सप्तम-स्वर में गाइये ,
स्तुति, वंदना , प्रशस्ति-गान ,
हमारे लिए , आज़ादी है ,
कहाँ मिलेगी ऐसी आज़ादी।
बाकी आवाज उठाना,
समझदार हैं आप ,
समय की बर्बादी है ,
अपनी ही बर्बादी है ॥

भटक गए हो
तो लौट लो , वहीँ
जहां से भटके थे ,
लोग इन्तजार करते मिलेंगे।
खो गए हो खुद तो
घर लौट लो ,
घरवाले प्रतीक्षा करते मिलेंगे।
उठो , खुद को पहचानो ,
सोये हो , तो जागो।।


मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 420

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 12, 2016 at 5:57am
मैं भी आपकी पारखी दृष्टि का बहुत कायल हूँ। रचना पर उपस्थिति एवं आपकी टिप्पणी हेतु आपका आभार एवं धन्यवाद , आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी , सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 10, 2016 at 10:07pm

विजय सर ! आपके कथन वैचित्र्य का मैं हमेशा कायल रहा हूँ . बहुत खूब .

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 9, 2016 at 10:02am
प्रिय मिथिलेश वामनकर जी , आपकी बधाई और विशेष बधाई , दोनों के लिए , आपका ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 9, 2016 at 10:00am
आदरणीय सुश्री प्रतिभा पाण्डेय जी , आपका आभार एवं धन्यवाद , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 9, 2016 at 1:20am

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर, गहन वैचारिक प्रस्तुतियां आपकी विशेषता बन गई है. इस शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

इन जबरदस्त पंक्तियों के लिए विशेष बधाई-

//भटक गए हो
तो लौट लो , वहीँ
जहां से भटके थे ,
लोग इन्तजार करते मिलेंगे।
खो गए हो खुद तो
घर लौट लो ,
घरवाले प्रतीक्षा करते मिलेंगे।
उठो , खुद को पहचानो ,
सोये हो , तो जागो।।//

Comment by pratibha pande on February 8, 2016 at 10:10pm

भटक गए हो
तो लौट लो , वहीँ
जहां से भटके थे ,
लोग इन्तजार करते मिलेंगे।
खो गए हो खुद तो
घर लौट लो ,///   सुन्दर प्रभावशाली रचना  हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
21 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service