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गरीबी - एक विषय : डॉo विजय शंकर

कवि थे ,
गरीबी बहुत है ,
अच्छे वाक-जाल में
बयान की , कविता अच्छी बनी ,
मित्रों ने चाय-वाय की फरमाइश की ,
खूब वाह-वाही मिली ,
चाय-वाय रात भर चली ||

लेखक थे ,
गरीबी पर लेख छपा था ,
दिन भर बधाईयाँ आती रहीं ,
बहुत खुश थे , आग्रह भी था ,
ख़ास मित्रों ,पत्नी और बच्चों को ,
मंहगे रेस्त्रां में डिनर पर ले गए ,
गरीबी पर डिस्कशन खूब हुआ ,
खाना - पीना देर रात तक हुआ ,
देर हो ही गयी , रात देर से लौटना हुआ ॥

फ्री लांसर थे ,
दुर्दशा-गरीबी पर ,
एक लघु वीडियो फिल्म
शूट की थी , चल निकली ,
रात बड़ी पार्टी हुई ,
नाच - गाना सब हुआ ,
घर ,सुबह पंहुचना हुआ ॥

अभी अभी चुनाव
जीत कर आये थे ,
पद भी मिल गया था,
किसी ख़ास ने सलाह दी,
गरीब बहुत दुखी है ,
उसके लिए कुछ हो जाए ,
अच्छा काम होगा , नाम होगा ,
बोले , मुद्दा अच्छा है , अगले चुनाव में ,
याद दिलाना , काम आएगा।
डिटेल्स बना लो , लग जाओ काम पर ,
वो रात-रात भर डिटेल्स बनाने लगा ॥

कितनी जागरूकता , कितने लोग ,
गरीबी के लिये रात-रात जागते हैं ,
गरीबी की कितनी फ़िकर करते हैं ,
गरीबी को कुछ नहीं होगा ,
गरीबी को रहना ही होगा ,
गरीबी को ज़िंदा रहना ही होगा ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित
डॉo विजय शंकर

Views: 592

Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on January 3, 2015 at 8:52pm
आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी , रचना पर आपकी प्रशस्ति के लिए बहुत - बहुत आभार। नव वर्ष शुभ एवं मंगलमय हो। सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 3, 2015 at 8:42pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी , आपको रचना पसंद आई , आपकी प्रशस्ति के लिए बहुत बहुत आभार। नव वर्ष शुभ एवं मंगलमय हो। सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 3, 2015 at 8:39pm
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी , आपने रचना को समय दिया ,प्रशस्ति के लिए बहुत बहुत आभार। नव वर्ष शुभ एवं मंगलमय हो। सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 3, 2015 at 8:37pm
आदरणीय डॉ o गोपाल नारायण जी , आपने रचना को समय दिया ,मान दिया ,प्रशस्ति के लिए बहुत बहुत आभार। नव वर्ष शुभ एवं मंगलमय हो। सादर।
Comment by Hari Prakash Dubey on January 3, 2015 at 8:29pm

गरीबी को रहना ही होगा ,
गरीबी को ज़िंदा रहना ही होगा ॥....बहुत ही सुन्दर ,यथार्थ चित्रण , हार्दिक बधाई आदरणीय डाक्टर विजय सर ! सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 3, 2015 at 8:11pm
आदरणीय सुशील सरना जी , आपने रचना को समय दिया , सम्मान दिया , बहुत बहुत आभार। मुझे तो यही लगता है कि गरीबी उतनी बड़ी समस्या है ही नहीं जितना हमने उसे बना रखा है , कुछ लोग तो रात- दिन बड़ी मेहनत करते हैं , गरीबी को बढ़ाने के लिए , तब हम उसे यह रूप दे पाएं हैं।
आपकी शुभ कामनाओं के लिए धन्यवाद। नव वर्ष शुभ एवं मंगलमय हो। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 3, 2015 at 6:07pm

आदरणीय विजय शंकर सर इस बेहतरीन भावाभिव्यक्ति के लिए नमन. 

गरीबी के लिये रात-रात जागते हैं ,
गरीबी की कितनी फ़िकर करते हैं ,
गरीबी को कुछ नहीं होगा ,
गरीबी को रहना ही होगा ,
गरीबी को ज़िंदा रहना ही होगा ॥

Comment by Shyam Narain Verma on January 3, 2015 at 5:02pm

सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति ..बधाई आपको .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 3, 2015 at 4:28pm

कितनी जागरूकता , कितने लोग ,
गरीबी के लिये रात-रात जागते हैं ,
गरीबी की कितनी फ़िकर करते हैं ,
गरीबी को कुछ नहीं होगा ,
गरीबी को रहना ही होगा ,
गरीबी को ज़िंदा रहना ही होगा ॥---------------विजय सर  i बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति  i

Comment by Sushil Sarna on January 3, 2015 at 3:11pm

कितनी जागरूकता , कितने लोग ,
गरीबी के लिये रात-रात जागते हैं ,
गरीबी की कितनी फ़िकर करते हैं ,
गरीबी को कुछ नहीं होगा ,
गरीबी को रहना ही होगा ,
गरीबी को ज़िंदा रहना ही होगा ॥
.... बहुत ही सुंदर और यथार्थ को चरित्रार्थ करती रचना … बिलकुल सही है आदरणीय गरीब नहीं होगा तो कई बड़े बड़े गरीब हो जायेंगे … अगर इनके चूल्हे जल जाएंगे तो महलों के चूल्हे बंद हो जाएंगे .... आदरणीय नमन आपकी लेखनी को और इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई डॉ विजय जी

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