For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरी कविते ! (रवि प्रकाश)

चाँद नगर को जाते-जाते,जिनका अश्व भटकता है;
उडुगण की उजली बस्ती में,चुँधियाया सा रुकता है।
स्वर्णकिरण की राहों पर जो,चलते हुए झिझकते हैं;
जिनके स्वप्न जहाँ विस्फारित,होते वहीं पिघलते हैं।
नीरदमाला बन कर उनके,निःश्वासों में गलना है।
मेरी कविते! साथी हो कर,हमको दूर निकलना है॥
जग में चौराहे कितने हैं,कितनी परम्पराएँ भी;
बनती-मिटती बस्ती भी है,अडिग अट्टालिकाएँ भी।
जीवन भर दोराहे पर जो,पथ-निर्धारण करते हैं;
आशा की कच्ची गागर में,सदा हताशा भरते हैं।
मैं उनको राह दिखाऊँगा,तुम्हें उजाला बनना है।
मेरी कविते! साथी हो कर,हमको दूर निकलना है॥
आँखों में कितनी ललक भरी,प्याला लेकिन ख़ाली है;
जग की मधुशाला के भीतर,मधुबाला मतवाली है।
पहले से ही जो बेसुध हैं,उनकी प्यास बुझाती है;
पलक बिछाए आकुल हैं जो,उनसे आँख चुराती है।
ऐसों का चषक मुझे बनना,तुम्हें सुरा में ढलना है।
मेरी कविते! साथी हो कर,हमको दूर निकलना है॥
नहीं असम्भव चलते-चलते,ज़्यादा दूर निकल जाएँ;
खुली हवाएँ,भरी घटाएँ,परिचित बन कर सहलाएँ।
जिस चौखट की निर्जनता में,बस सूरज-चंदा आते;
उसी द्वार पे मुक्त कंठ से,हम दोनों सोहर गाते।
विक्षुब्ध कहीं मत हो जाना,तुमको यूँ ही पलना है।
मेरी कविते! साथी हो कर,हमको दूर निकलना है॥
वाणी की क्षमता चुक जाती,भाव निरन्तर भरते हैं;
नई बहारें नित खिलती हैं,पात पुराने झरते हैं।
नयनों की कोरों में आख़िर,बाक़ी रहती नमी कहीं;
गहरे,सच्चे उद्गारों में,साफ झलकती कमी कहीं।
सब मौनों की भाषा बन कर,स्वर में तुम्हें बदलना है।
मेरी कविते! साथी हो कर,हमको दूर निकलना है॥
सबको अपनी ही धुकधुक में,मीठी बोली पढ़नी है;
इन बेगाने बुतख़ानों में,ख़ुद की प्रतिमा गढ़नी है।
साधन संचित कर सकता है,जिसकी आदत ही छल है;
आँसू को मुस्कान बनाना,लेकिन अपना कौशल है।
निर्भीकों के अन्तरतम में,धूनी बन के जलना है।
मेरी कविते! साथी हो कर,हमको दूर निकलना है॥

मौलिक व अप्रकाशित।

Views: 438

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Prakash on July 26, 2013 at 5:15pm
धन्यवाद।
Comment by वेदिका on July 19, 2013 at 4:03pm

सुंदर और प्रभाव शाली भावो की प्रस्तुति!! 

इस सुंदर प्रस्तुति पर ह्रदय से बधाई लीजिये आदरणीय रवि जी!! 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 18, 2013 at 6:29pm

"सुंदर रचना प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई..आदरणीय..रवि जी

Comment by Ravi Prakash on July 18, 2013 at 5:21pm
धन्यवाद जी !!!
Comment by राजेश 'मृदु' on July 18, 2013 at 4:43pm

इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिए आपको ढेरों बधाई, सादर

Comment by Ravi Prakash on July 18, 2013 at 1:46pm
सराहना के लिए कोटिशः धन्यवाद।
Comment by अरुन 'अनन्त' on July 18, 2013 at 11:07am

मित्रवर आपकी रचना के भाव इतने सुन्दर और गहरे होते हैं कि बस मन भर आता है पढ़ते पढ़ते, बेहतरीन पंक्तियाँ. सोहर शब्द सुने हुए जमाना हो गया है शायद भूल ही गया था पुनः विस्मरण कराने हेतु हार्दिक आभार इस रचना पर ढेरों बधाई स्वीकारें.

Comment by coontee mukerji on July 18, 2013 at 10:44am

वाणी की क्षमता चुक जाती,भाव निरन्तर भरते हैं;
नई बहारें नित खिलती हैं,पात पुराने झरते हैं।
नयनों की कोरों में आख़िर,बाक़ी रहती नमी कहीं;
गहरे,सच्चे उद्गारों में,साफ झलकती कमी कहीं।
सब मौनों की भाषा बन कर,स्वर में तुम्हें बदलना है।
मेरी कविते! साथी हो कर,हमको दूर निकलना है॥...........बहुत सुंदर .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Samar kabeer commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब, काफ़ी समय बाद मंच पर आपकी ग़ज़ल पढ़कर अच्छा लगा । ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,…"
30 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"बच्चों का ये जोश, सँभालो हे बजरंगी भीत चढ़े सब साथ, बात माने ना संगी तोड़ रहे सब आम, पहन कपड़े…"
7 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"रोला छंद ++++++   आँगन में है पेड़, मौसमी आम फले…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . .तकदीर
"आदरणीय अच्छे सार्थक दोहे हुए हैं , हार्दिक बधाई  आख़िरी दोहे की मात्रा फिर से गिन लीजिये …"
yesterday
सालिक गणवीर shared Admin's page on Facebook
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर   होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर । उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service