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हम जिंदगी से क्या चाहते हैं
-----------------------
हम खुद नहीं जानते
हम जिंदगी से क्या चाहते हैं
कुछ कर गुजरने की चाहत मन में लिए
अधूरी चाहतों में जिए जाते हैं

उभरती हैं जब मन में
लीक से हटकर ,कुछ कर गुजरने की चाह
संस्कारों की लोरी दे कर
उस चाहत को सुलाए जाते हैं

सुनहली धुप से भरा आसमान सामने हैं
मन के बंद अँधेरे कमरे में सिमटे जाते हैं

चाहते हैं ज़िन्दगी में सागर सा विस्तार
हकीकत में कूप दादुर सा जिए जाते हैं

चाहते हैं ज़िन्दगी में दरिया सी रवानी
और अश्क आँखों में जज़्ब किये जाते हैं

चाहते हैं जीत लें ज़िन्दगी की दौढ़
और बैसाखियों के सहारे चले जाते हैं

कुछ कर गुजरने की चाहत
कुछ न कर पाने की कसक
अजीब कशमकश में
ज़िंदगी जिए जाते हैं

हम खुद नहीं जानते
हम ज़िन्दगी से क्या चाहते हैं

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Comment

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Comment by Raju on April 16, 2010 at 4:29pm
Rajni Didi Pranaam ...

Aapki ye kavita bahut hi achhi hai ... hum sab ko aapki aur v rachnao ka intezaar rahega
Comment by BIJAY PATHAK on April 14, 2010 at 1:45pm
Adarniya Rajni ji,
Jiwan ki sachai ko itne sunder kavita ke madhyam se likhne ke liye dhanyabad,
कुछ कर गुजरने की चाहत
कुछ न कर पाने की कसक
अजीब कशमकश में
ज़िंदगी जिए जाते हैं
Bahut khub
Comment by amit on April 12, 2010 at 8:56pm
ye bahut hi achi rachna hai aur isme jivan ki sachi bat batayi gayi hai
Comment by Sanjay Kumar Singh on April 11, 2010 at 5:18pm
Bahut badhiya rachna hai, jindgi ki sachaai,aur anubhaw ka samawesh ees kavita mey dikhta hai, Sundar ban padaa hai,
Comment by Admin on April 11, 2010 at 2:48pm
चाहते हैं ज़िन्दगी में सागर सा विस्तार
हकीकत में कूप दादुर सा जिए जाते हैं


आदरणीया रजनी जी ,प्रणाम ,सर्वप्रथम मै आपको प्रथम ब्लॉग ओपन बुक्स पर लिखने के लिये धन्यबाद देता हू, आपने बहुत ही अच्छी कविता लिखा है, ये सही है की अगर आप समंदर को अपने अन्दर छुपा लेना चाहते है तो आपका ह्रदय भी समुन्दर सा विशाल होना चाहिये , सपना देखना अच्छी बात है किन्तु उस सपना को पूरा करने हेतु प्रयत्न भी करना चाहिये,इस कविता का एक एक लाइन ज्ञानवर्धक और संदेशो से भरा हुआ है, बहुत अच्छी रचना,
आपके अगले ब्लॉग के इंतजार मे
Admin
OBO

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 11, 2010 at 1:33pm
उभरती हैं जब मन में
लीक से हटकर ,कुछ कर गुजरने की चाह
संस्कारों की लोरी दे कर
उस चाहत को सुलाए जाते हैं

रजनी दीदी सबसे पहले तो आपके द्वारा लिखे गये इस साईट पर पहले ब्लॉग के लिये आपको बहुत बहुत धन्यबाद, आप की कविता का एक एक लाइन बिलकुल यथार्थ से जुडे हुवे है, अगर परंपरा से हट कर कोई काम, कोई ब्यवसाय अगर करने की कोशिश किया जाता है तो रुढ़िवादी शक्तिया बराबर बिरोध करती रहती है, पर संघर्ष का नाम ही तो जिन्दगी है, जो लोग इन शक्तियों का सामना किया और इनसे नहीं डरा वो ही कुछ करते है और आगे बढते है, कहा गया है न की डर के आगे जीत है,
दीदी आपने बहुत ही खुबसूरत और अर्थ से परिपूर्ण रचना लिखा है, बहुत बढ़िया, आप के अगले पोस्ट का बेसब्री से इन्तजार रहेगा,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on April 11, 2010 at 1:08pm
bahut badhiya rachna hai rajni didi.....
कुछ कर गुजरने की चाहत
कुछ न कर पाने की कसक
अजीब कशमकश में
ज़िंदगी जिए जाते हैं
dhanybaad didi yahan humlogo ke beech itni acchhi rachna post karne ke liye........
aapke aur bhi rachnaon ka intezaar rahega...

preetam tiwary

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