ग़ज़ल
इस तरह तोड़ा हमारा दिल हमारे प्यार ने.|
जैसे हक जीने का हम से ले लिया संसार ने ||
जिंदगी को आज जकड़ा, इस तरह तूफ़ान ने,
ले लिया आगोश मैं मुझे दर्द के मंझधार ने ||
जीना है मुश्किल बहुत अब, जिंदगी है एक सजा,
साथ छोड़ा है मेरा हर हाथ और हथियार ने ||
थी कभी हसरत, चमन में हों बहारें फूल की,
पर मुझे ही क़त्ल कर डाला मेरे गुलज़ार ने ||
अब सहारा है यही गम और यही गम मीत है,
प्यार कह कर के दिया जो कुछ मुझे बाज़ार ने ||
मुझको मेरे दर्द में डूबा हुआ तुम छोड़ दो,
दोस्ती कर ली है मुझसे, मेरे गम के हार ने ||
रचनाकार - अभय दीपराज
Comment
जिंदगी को आज जकड़ा इस तरह तूफ़ान ने,
ले लिया आगोश मैं मुझे दर्द के मंझधार ने ||
दीपराज साहब बढ़िया ग़ज़ल पढ़ी है आप ने, सभी शे,र अच्छे लगे, ऊपर लिखा शेयर ज्यादा करीब लगा |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online