For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :फ़क़ीरों को डराओ मत

1222-1222-1222-1222

दिखाकर तुम हथेली की लकीरों को डराओ मत

रियाज़त से बदल देंगे नसीबों को डराओ मत               रियाज़त=परिश्रम

 

तबस्सुम के दिये की लौ गला देगी हर इक ज़ंजीर

शब-ए-गम की तवालत से असीरों को डराओ मत            तवालत=लम्बाई, असीर=कैदी

                                                  

ये जन्नत की हक़ीक़त भी बख़ूबी जानते हैं जी

दिखाकर डर जहन्नुम का ग़रीबों को डराओ मत

 

मज़ा आने लगा है अब सभी को दर्द-ए-उल्फ़त का

शिफ़ा का नाम लेकर तुम मरीज़ों को डराओ मत

 

अनय के सामने हरगिज न सिर अपना झुकायेंगे

दिखाकर तेग की ताकत फ़क़ीरों को डराओ मत

 

जुनूं है बादबां अपना तो ज़िद पतवार है अपनी

तलातुम से निपट लेंगे सफ़ीनों को डराओ मत            तलातुम=जलप्लावन

 

अँधेरे में शराफ़त भी हुई ‘खुरशीद’ जी उरयाँ               उरयाँ=नग्न

उजाले के मुसाहिब बन शरीफ़ों को डराओ मत

.

 मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 887

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by khursheed khairadi on February 7, 2015 at 11:10am

आदरणीय श्याम नारायण जी ,हार्दिक आभार |सादर | 

Comment by khursheed khairadi on February 7, 2015 at 11:09am

आदरणीय गिरिराज सर ,ग़ज़ल पर आपके आशीर्वाद की मुहर लग गई ,बस ग़ज़ल सार्थक हो गई |सादर अभिनन्दन |

Comment by khursheed khairadi on February 7, 2015 at 11:06am

आदरणीय मिथिलेश जी , आदरणीय आशुतोष जी ,आपकी मुहब्बत  मेरे लिए अनमोल है |सादर आभार |

Comment by khursheed khairadi on February 7, 2015 at 11:04am

आदरणीय रामशिरोमणि पाठक साहब . सोमेश भाई जी ,ज़र्रानवाज़ी का शुक्रिया |सादर 

Comment by khursheed khairadi on February 7, 2015 at 11:03am

आदरणीय हरिप्रकाश सर ,आदरणीय विजय शंकर सर ,आपके स्नेह का ह्रदय से आभारी हूं |सादर |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 7, 2015 at 9:27am

आदरणीय खुरशीद भाई , हमेशा की तरह फिर एक बेहतरीन गज़ल पढ़वाई आपने , हर एक शे र के लिये आपको दिली मुबारक बाद ।

अँधेरे में शराफ़त भी हुई ‘खुरशीद’ जी उरयाँ               

उजाले के मुसाहिब बन शरीफ़ों को डराओ मत --  सबसे बेहतर !! बहुत बहुत बधाई ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 6, 2015 at 9:00pm

आदरणीय खुर्शीद जी इस बह पर लिखी ग़ज़ल को gउन्गुनाने में बिशेष आनंद आता है ..इस रचना की गेयता और भाव मन को छूते हैं ..बहुत ही शानदार रचना ..तमाम उर्दू के शब्दों के प्रयोग सीखने का मौका मिला .. हर शेर उम्दा है ..मेरी तरफ से ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 6, 2015 at 10:33am
बहुत सुन्दर ग़ज़ल बनी है , आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी , बधाई, सादर।
Comment by somesh kumar on February 6, 2015 at 10:13am

दिखाकर तुम हथेली की लकीरों को डराओ मत

रियाज़त से बदल देंगे नसीबों को डराओ मत  

सुंदर गज़ल हुई भाई जी |अपनी एक पुरानी रचना स्मरण हो आई

क्या है यहाँ विधि का लेखा

कैसे बतलाए हाथों की रेखा

स्मृति-पटल पर चिन्ह गहरे

भाग्य-उदय  से पूर्व अँधेरे  

पौरुष मन का ललकार रहा

तू बिना लड़े क्यूँ हार रहा ?

तू ही रूद्र तू ही ब्रम्हा है

तेरी रचना तो देव यहाँ है

मत मान क्या है भाग्य-लकीरे

तू चलता रह धीरे-धीरे

मंजिल तेरा वरन करेगी

सफ़लता तेरे कदम चूमेगी         

Comment by Shyam Narain Verma on February 6, 2015 at 10:01am

खुबसूरत ग़ज़ल हुई है |सादर अभिनन्दन |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service