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                  गजल

ईमानदार मैदाॅं में, बाजी मार जाते हैं।     
बेईमानों के घोडे, आखिरी हार जाते हैं।।

परस्तिश करती है, उनकी सल्तनत दोस्तों।
वतन की राह में,जो जांॅ निसार जाते हैं।।

हथियारों पे कायम है, कायनात जिनकी।
आखिर उनको यही, सहारे संहार जाते हैं।।

जो सरासर नमक की रोटी बनाते हैं।
उनके दर पे, रंजो-गम बेशुमार जाते हैं।।

ता-उम्र रहे जो धर्मो-औ-ईमाॅ पे कायम ’चंदन’
बेशक उनके सफीने दरिया पार जाते हैं।।

                       नेमीचंद पूनिया ’चंदन’

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 14, 2011 at 11:27pm
पुनिया साहिब , आपकी गज़लें सदैव एक बेहतरीन ख्यालात से लबरेज होती है , अच्छी ग़ज़ल , बहुत बहुत आभार |

कृपया ध्यान दे...

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