For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोहा- 9 (प्रेम पियूष)

पूर्ण चाँदनी रात है, अगणित तारे संग !
अब विलम्ब क्यों है प्रिये , छेड़ें प्रेम प्रसंग!!

कनक बदन पर कंचुकी ,सुन्दर रूप अनूप !
वाणी में माधुर्य ज्यों , सरदी में प्रिय धूप !!

अद्भुत क्षण मेरे लिए,जब आये मनमीत !
ह्रदय बना वीणा सरस ,गाता है मन गीत !!

प्रेम न देखे जाति को ,सच कहता हूँ यार !
यह तो सुमन सुगंध सम ,इसका सहज प्रसार !!

विरह सिंधु में डूबता ,खोजे मिले न राह !
विकल हुआ अब ताकता,मन का बंदरगाह !!

प्रेम सुधाकर हैं उदित ,छेड़ सुहाने तान !
अधरों पर फिर से खिली ,वही मधुर मुस्कान !!


************************************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 945

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 28, 2013 at 10:15am

आदरणीय सौरभ जी, "उदित के त्रिकल से शब्द संयोजन का निर्वाह न होने को स्पष्ट कर कृतार्थ करे | सादर  

प्रेम सुधाकर उदित हैं ,छेड़ सुहाने तान !
अधरों पर फिर से खिली ,वही मधुर मुस्कान !!
पहला विषम चरण अशुद्धता के बहुत निकट है. उदित  के त्रिकल से शब्द के संयोजन का उचित ढंग से निर्वाह नहीं हो रहा है. उदित है  की जगह है उदित अधिक उचित होता. ऐसा मैं क्यों कह रहा हूँ ???


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 28, 2013 at 10:13am

आप अपने इस पोस्ट (दोहों पर टिप्पणी) पर मेरे हर कहे को पुनः पढ़ें और मेरे मंतव्य पर आपकी प्रतिक्रिया जाना चाहता हूँ. साथ ही, यह भी बतायें कि अंतिम दोहे पर किया गया प्रश्न कितना समीचीन है और उसका सही उत्तर क्या है.

अब और सुन्दर हो गया आपके कहे अनुसार... यानि आपके अनुसार कोई अंतर नहीं पड़ा !!!

Comment by ram shiromani pathak on November 28, 2013 at 10:10am

प्रेम सुधाकर हैं उदित ,छेड़ सुहाने तान !
अधरों पर फिर से खिली ,वही मधुर मुस्कान !! इसे ऐसा किया मैंने

प्रेम सिंधु में डूबता ,खोजे मिले न राह !
विकल हुआ अब ताकता,मन का बंदरगाह !! यह गलत है

अद्भुत क्षण मेरे लिए,जब आये मनमीत !
ह्रदय बना वीणा सरस ,गाता है मन गीत !! अब और सुन्दर हो गया आपके कहे अनुसार

कनक बदन पर कंचुकी ,सुन्दर रूप अनूप !
वाणी में माधुर्य ज्यों , सरदी में प्रिय धूप !! अब ठीक है न आदरणीय

पूर्ण चाँदनी रात है, अगणित तारे संग !
अब विलम्ब क्यों है प्रिये , छेड़ें प्रेम प्रसंग!! इसे ऐसा कर लिया


आदरणीय सौरभ जी अपने विवेकानुसार इतना समझ पाया हूँ ///यदि कहीं गलती है तो कृपा कर मार्गदर्शन करें। । सादर

Comment by ram shiromani pathak on November 28, 2013 at 10:00am

आदरणीय सौरभ जी आपकी प्रतिक्रया के एक एक शब्द मै ध्यान  से पढ़ता हूँ …ऱहि  बात  वाह  वाही कि तो मै इससे बचता हूँ। …आप सदैव सही व् उचित  मार्गदर्शन करते रहे  है आदरणीय। ।और मै अब वाह वाही के लिए नहीं लिखता। … आपकी प्रतिक्रिया जब आती है तब जाकर संतुष्टि  मिलती  है कि मै कितने  पानी  में हूँ, कहाँ गलती हुई,और क्या सुधार किया  जा सकता है   । ।इतना तो ज्ञात है कौन कितना सोचता है और किस तरह  का  कमेंट  करता है ///अतः आप से यही निवेदन है मेरा सदा मार्गदर्शन करते रहें ,मुझे सीखना है और आगे बढ़ना है //// सादर प्रणाम 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 28, 2013 at 9:44am

आपने मेरी टिप्पणी को कायदे से पढ़ा भी, रामभाईजी ? 

यदि हाँ, तो फिर आप क्या समझे मेरी टिप्पणी से यह तो आपने साझा किया ही नहीं. मैंने अंतिम दोहे के संदर्भ में एक प्रश्न भी किया है उसके प्रति कुछ न कहना आपके नकार भाव को ही साझा कर रहा है.

भइये, ऐसा आभार संप्रेषण किस काम का कि कोई स्पष्ट समझ साझा न हो ?

यदि वाह-वाह का आग्रह इतना संघनीभूत है, जैसा कि कई बार मुझे प्रतीत होता है, तो मैं भी आगे से आपके हर कहे पर ’बहुत खूब’, ’वाह-वाह’ कह कर निकल जाऊँगा, जैसा कि कई जगहों पर कई स्वनामधन्यों के पोस्ट पर करने को बाध्य हो जाता हूँ. आपसब भी मस्त और मैं भी खुश ! 

आपभी इस मंच की प्रस्तुतियों पर जिस तरह की टिप्पणियाँ करते हुए दीखते हैं, वह कोई शुभ संकेत नहीं है.

शुभ-शुभ

Comment by ram shiromani pathak on November 28, 2013 at 12:31am

आदरणीय सौरभ जी आपके इन अमूल्य सुझावों का मै ह्रदय से स्वागत करता हूँ... आपका  अनुमोदन  व्  सुझाव  सदैव  कुछ न  कुछ  सीखा  जाता  है  … ऐसे  ही मार्गदर्शन करते रहे आदरणीय। । सादर प्रणाम    


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 27, 2013 at 11:55pm

पूर्ण चाँदनी रात है, अगणित तारे संग !
अब विलम्ब क्यूँ हो प्रिये ,छेड़ो प्रेम प्रसंग !!
अब विलम्ब क्यों हो प्रिये  है तो छेड़ें प्रेम प्रसंग अधिक उचित होगा. यदि अब विलम्ब क्यों है प्रिये  तो छेड़ो प्रेम प्रसंग होगा. सही पद का चयन कर लें. क्यूँ  न लिखा करें, यह शास्त्रीय शब्द नहीं है.

कनक बदन पर कंचुकी ,सुन्दर रूप अनूप !
वाणी में माधुर्य ज्यों ,शर्दी में प्रिय धूप !!
कनक बदन पर कंचुकी .. :-)) .. जय हो..
शर्दी  को सरदी करियो भाई ! प्रिय धूप  सरदी या सर्दी में ! या, नम धूप !!.. :-))

अद्भुत क्षण मेरे लिए,जब आये मनमीत !
ह्रदय बना वीणा सदृश ,गाता है मन गीत !!
सदृश  को सरस कहें तो बात और उभर कर आयेगी. बढिया दोहा प्रयास.

प्रेम न देखे जाति को ,सच कहता हूँ यार !
यह तो सुमन सुगंध सम ,इसका सहज प्रसार !!
देखियेगा भाई.. आसार ठीक बने रहें आपके लिए... :-)))))))))))))))))))))))

प्रेम सिंधु में डूबता ,खोजे मिले न राह !
विकल हुआ अब ताकता,मन का बंदरगाह !!
ए भाई.. प्रेम सिंधु में डूबा हुआ क्यों विकल होगा ? या, क्यों विकल हो कर मन के बंदरगाह की ओर ताकेगा ? वो प्रेम सिंधु में ही डूब रहा है न..!! प्रेम के सात्विक स्वरूप को झुठलाता हुआ या उस पर प्रश्न चिह्न लगाता हुआ कथ्य है यह. सॉरी.

प्रेम सुधाकर उदित हैं ,छेड़ सुहाने तान !
अधरों पर फिर से खिली ,वही मधुर मुस्कान !!
पहला विषम चरण अशुद्धता के बहुत निकट है. उदित  के त्रिकल से शब्द के संयोजन का उचित ढंग से निर्वाह नहीं हो रहा है. उदित है  की जगह है उदित अधिक उचित होता. ऐसा मैं क्यों कह रहा हूँ ???

बधाई इस प्रस्तुति पर. किन्तु सुझावों पर दृष्टि डालेंगे ऐसी आशा है.
शुभ-शुभ

Comment by ram shiromani pathak on November 27, 2013 at 9:06am

बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय निकोर जी  ... सादर 

Comment by vijay nikore on November 27, 2013 at 6:47am

बहुत ही मनोहारी दोहे लिखे हैं, आदरणीय राम जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by ram shiromani pathak on November 26, 2013 at 11:57am

बहुत बहुत आभार आदरणीया प्राची जी। ।सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
4 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
6 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
6 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
6 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी, बहुत धन्यवाद"
6 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी सादर नमस्कार। हौसला बढ़ाने हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रियः"
7 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service