फिर भी हम आईने से डरते थे
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लता जी , भाव खुबसूरत है, कथ्य में जान है, ग़ज़ल शिल्प की दृष्टी से कुछ कमियां है, एक ही काफिया को एक से अधिक शे'र में दोहराना अच्छा नहीं माना जाता, मतला मीटर में है किन्तु उस मीटर का पालन अन्य शेरों में नहीं हो पाया है |
तिलक सर की ग़ज़ल कक्षा देखे मदद मिलेगा | भावपूर्ण रचना हेतु बधाई आपको |
प्रिय लता जी - ख़ुशी हुई आपके विचारों को जानकार - मैं अब तक प्राप्त अपने ज्ञान के साथ छल नहीं कर सकता - एक तो जल्दी टिप्पणियां नहीं देता हूँ - क्योंकि टिपण्णी बेबाकी से देने से कितने लोगों को बुरा भी लगता है - लेकिन जहाँ सम्भावनाएं अच्छी देखता हूँ वहां कलम ('सारी' - आजकल 'की बोर्ड') रूकती नहीं है. मेरा मानना है की भले कम लिखें लेकिन दुरुस्त लिखें ताकि समाज में और बेहतरी आ सके और लेखन की सार्थकता बनी रहे - शुभकामनाओं के साथ -
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
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