For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


' नागरिक...जी हां नागरिक ही कहा मैंने ', जर्जर भिखारी ने कहा।
' तो यहां क्या कर रहे हो?' सूट बूट धारी लोगों ने उसे घुड़का।
' अपना सच ढूंढ रहा हूं ।'
' मतलब?'
' नहीं समझे?'
' नहीं।समझा दो।'
' सच यानी अपने यहां का होने का प्रमाण साहिब।'
' तुम यहीं के हो?'
' पीढ़ियां गुजर गईं यहीं।'
' फिर प्रमाण क्या?'
' अपने हाकिमों को दिखाना होगा न।वरना कहां भीख मांगूंगा?'
' तुम्हारा मतलब भीख मांगने के लाइसेंस से है क्या?'
' हे हे हे...नहीं समझे फिर से।'
' ऐं..? सूटवाले बुदबुदाए।
' मतलब यहां का होने से है।भीख तो तुम भी मांग रहे हो।'
' क्या?' गुस्से में सवाल किया गया।
' भिखारी कभी गुस्सा नहीं होते।तुम कागज के नए टुकड़ों पर इतरा रहे हो,जो तुमलोगों ने किसी तरह हासिल कर लिए हैं।'
' और तुम?'
' मैं अपने पुश्तैनी काग़ज़ात टटोल रहा हूं,अपने बाप दादा की भीख वाली झोलियों में।'
' तुम पुश्तैनी भिखारी... बेगर हो?'
' जैसे तुमसब खानदानी भगोड़े हो।'
' क्या?'
' हां।झमन सिंह का नामी गिरामी परिवार परंपराओं का निर्वाह करता हुआ सड़क पर आ गया है।'
' कौन झम न?'
' झमन सिंह,मेरे दादा थे।जमीन जायदाद थी।खेती बारी करते हुए कर्ज में दबते गए।जमीन रेहन हुईं,फिर बैनामा।बची खुची कुछ जमीन भगोड़ों के भेंट हो गई।परिवार सड़क पर आ गया।'
' तुम?'
' गुमान सिंह हूं, झमन सिंह का बेटा।बी ए किया है,आर्ट से।नौकरी नहीं हुई।'
' हम लंबे अरसे से यहां रह रहे हैं।'
' और हम यहीं के है।फ़र्क है कि तुमलोगों के चलते हमलोग भिखारी हो गए।'
' ज्यादा मत बोलो।'
' अभी बोलने को और भी है।जरा धैर्य रखो भगोड़ो! कौन ठिकाना हमारी जमीन तुम्हारे पास से निकले'
फिर वह भिखारी अपनी पोटलियों में जल्दी जल्दी कुछ तलाशने लगा।
"मौलिक व अप्रकाशि त"

Views: 401

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by आशीष यादव on December 15, 2019 at 5:57pm

अच्छी लघुकथा।

Comment by Manan Kumar singh on December 13, 2019 at 9:54pm

शुक्रिया आदरणीय।

Comment by Samar kabeer on December 13, 2019 at 3:01pm

जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने, बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
7 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर  होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर ।उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
7 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service