For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भिड़े प्रहरी न्याय के - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

दोहे

भिड़े प्रहरी न्याय के, लेकर निज अभिमान
मुसमुस जनता हँस रही, ले इस पर संज्ञान।१।


खाकी का ईमान क्या, बिकता काला कोट
वह नेता भी भ्रष्ट है, जन दे जिसको वोट।२।


लूट पीट जन आम को, करें न्याय का खून
खाकी, काला कोट खुद, बन बैठे कानून।३।


खाकी, काले कोट को, है इतना अभिमान
आम नागरिक कब भला, हैं इनको इन्सान।४।


रहा न जिनका आचरण, जैसा सूप सुभाय
वही  सुरक्षा  माँगते, वही  कह  रहे  न्याय।५।


काली वर्दी पड़ गयी, खाकी पर अधिभार
जिस डण्डे की धौंस थी, हुआ वही लाचार।६।


चलते रहते नित अगर, न्याय धर्म की राह
लगती ऐसे ना कभी, जनमानस की आह।७।


वर्दी पिटते देख कर, चीख रहा परिवार
वैसे बोला क्या कभी, बेबस को मत मार।८।


सीखें दोनों ही यहाँ, संयम का व्यवहार
टूटेगा फिर यूँ नहीं, कभी मान का तार।९।


इस  घटना  का  बस  यही, दोनों  को  संदेश
करो नहीं अभिमान का, कभी सघन परिवेश।१०।


मौलिक अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

Views: 854

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on November 9, 2019 at 5:27am

आद0 लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी सादर अभिवादन। समसामयिक विषय को आभार बनाकर बेहतरीन रचना की आपने। बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 8, 2019 at 8:29am

आदरणीय लक्ष्मण धामी “मुसाफिर” जी , समसामयिक उठे प्रासंगिक विषय पर कुछ कुछ उद्वेलित करती हुयी प्रस्तुत कविता के लिए बधाई। विचारणीय यह है कि प्रथम तो हम राजनैतिक संक्रमण में प्राप्त लोकतंत्र के साथ प्रयोग कर रहे हैं , द्वित्तीय , हमारा लोकतंत्र अभी पूर्णरूपेण परिभाषित ही नहीं हो पाया और उसे संवर्गों में बटा विशाल जन समुदाय अपने अपने पक्ष को देखते हुए परिभाषित करने का प्रयास कर रहा है। इन सब के अतिरिक्त हर राजनैतिक संवर्ग स्वयं को श्रेष्ठ स्थापित करने में तो लगा ही है , सर्विस क्लास भी उसी प्रकार से स्वयं को स्थापित करने के लिए प्रयास रत है। यह सारी बातें राजनीति से नहीं अच्छी प्राथमिक शिक्षा से जिसमें बच्चों को शिष्ट और सभ्रांत नागरिक बनने की प्रेरक शिक्षा दी जाये से संभल सकती हैं। हर काम के लिए और हर पुलिस के पीछे आप पुलिस नहीं लगा सकते, और लगा भी लें तो यह स्थिति शांत हो जाएगी , संभव नहीं है। हर सेवा संवर्ग के कुछ सिद्धांत और आदर्श होते हैं , उन्हें उन पर अडिग रहने की शिक्षा देनी चाहिए।
आपने बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर रचना प्रस्तुत की है , आपको बहुत बहुत बधाई। सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service