मदमस्त चलती हवाएं और कार में एफएम पर मल्हार सुनकर, पास बैठी मेरी सखी साथ में गाना गाने लगती है "सावन के झूलों ने मुझको बुलाया, मैं परदेशी घर वापस आया" गाते गाते उसका स्वर धीमा होता गया और फिर अचानक वो खामोश हो गयी, उसको खामोश देखकर मुझसे पूंछे बिना नही रहा गया। फिर वो पुरानी यादों में खोई हुई सी मुझसे कहती है कि कहाँ गुम हो गए सावन में पड़ने वाले झूले, एक समय था जब सावन माह के आरम्भ होते ही घर के आंगन में लगे पेड़ पर झूले पड़ जाते थे और किशोरिया गाने लगती थी..
कच्ची नीम की निबौरी, सावन जल्दी आइयों रे।
अम्मा दूर मत दीजो रे, दादा नही बुलावेगे।
भाभी दूर मत दीजो रे, भइया नही बुलावेगे।
सावन के झूले की ये झोट बृजक्षेत्र के हर गांव, हर कस्बे में और हर नगर में जगह जगह नजर आती थी, पास पड़ौस की सभी महिलाएं अपनी अपनी सहेलियों के साथ झुंड बनाकर घरों में झूले डालती थी, रंग बिरंगी वेशभूषा में उसका दमकता सौंदर्य प्रकृति के उन्मुक्त वातावरण में और भी मनमोहक लगता था। किशोरियों और बालाओं में सावन के गीतों की प्रतिस्पर्धा सी होने लग जाती थी। झूलों के झोटों के साथ गीतों के आनन्द की पींगे बढ़ने लगती थी। हर विवाहिता के मन में पहले सावन की हुक उठने लगती थी वो अपने मायके में जाकर अपनी सखी सहेलियों से ठिठोली करने की सोचने लगती थी। अपने प्रियतम को सावन की पाती लिखने के लिए उसका दिल मचलने लगता था, साथ ही झूलों से आकाश चूमने की चाहत जवान होने लगती थी। बरखा बहार उसके तन मन को भिगोने लगती थी और उसका मन मयूर नृत्य करने लगता था। आखिर कुछ तो बात है इस महीने में जो सावन की इस आहट का पता अपने आप ही लगने लगता है और मन में कल्पनाएं आकार लेने लगती हैं।
फिजाओं में जब सौंधी खुशबू आने लगे, मदमस्त हवाएं बहने लगें, प्रकृति प्रेयसी के गीत गुनगुनाने लगे, भीगी भीगी ऋतु में हम तुम, तुम हम कहने लगे दिल की हर धड़कन, तो समझ लीजिए कि सावन का खुमार अपने पूरे यौवन पर है, जी हां सावन होता ही ऐसा है। क्या घर, क्या आंगन, क्या जंगल, क्या नदिया और क्या बादल सावन में तो ऐसा लगता है जैसे कि पूरी कायनात भीग रही है और जब रेशा रेशा, पत्ता पत्ता, बूटा बूटा, जर्रा जर्रा जिस वक्त भीगता है तब मिट्टी की सौंधी खुश्बू, हवाओं में घुल जाती है। अलबेली प्रकृति में नवयोवनायें झूम के गाने लगती है।
रिम झिम के गीत सावन गाये, हाय
भीगी भीगी रातों में।
होठो पे बात दिल की आय हाय
भीगी भीगी रातों
डॉ हृदेश चौधरी...
लेखिका
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
मुहतरमा डॉ हृदेश चौधरी जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
कृपया रचना के साथ उसकी विधा भी लिख दिया करें ।
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