1~
भवन और सड़कें पुल-पुलियाँ,मजदूरों की माया।
ईंटे पत्थर ढोते-ढोते, सिकुड़ी इनकी काया।।
श्रम के कौशल से भारत में, ताजमहल बन पाया।
लेकिन मजदूरों के हिस्से, हाथ कटाना आया।।
2~
भूख मिटाने की खातिर ही, श्रम करतीं महिलाएँ।
यदाकदा मजदूरी करते, बाल श्रमिक भी पाएँ।।
शिक्षा से वंचित रह जातीं, इनकीं ही संतानें।
मगर नीति निर्धारक शिक्षा, सौ प्रतिशत ही मानें।।
3~
सबकी खातिर महल अटारीं, जो मजदूर बनाते।
भूमिहीन होकर बेचारे, बेघर ही रह जाते।।
नेता जब इनसे करते हैं, झूठे-झूठे वादे।
तब ये मन में सपने बुनते, निश्छल सीधे-सादे।।
4~
फटे पुराने वस्त्र पहनकर, जो रहता अधनंगा।
उसके ठेकेदारों के घर, बहती धन की गंगा।।
छत भी जिसे नसीब नहीं है, फुटपाथों पर सोता।
भूख गरीबी लाचारी सब, श्रमजीवी ही ढोता।।
5~
पेंतालीस पचास रहे या, ज़ीरो डिग्री पारा।
बोझा ढोते बीत रहा है, इनका जीवन सारा।।
मजदूरों के घर में अक्सर, होते रहते फाँके।
इनके श्रम की सच्ची कीमत,कभी न कोई आँके।।
6-
उत्पादन के तत्वों में है, श्रम अत्यंत जरूरी।
नियमित और न्यूनतम फिर भी, मिलती नहीं मजूरी।।
श्रमिकों के हित बना अधिनियम,जो भी लँगड़ा लूला।
शासन खुद कानून बनाकर, अमल कराना भूला।।
7~
जहाँ सदा होते ही रहते, नित नूतन घोटाले।
उसी देश में मजदूरों को, खाने के भी लाले।।
मजदूरों के हित में कोई, नयी योजना लाएँ।
इस दरिद्रता के जीवन से, उनको मुक्ति दिलाएँ।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**
Comment
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय बासुदेव अग्रवाल जी।
आ0 हरिओम श्रीवास्तव जी सार छंद में आपने मज़दूरों की पीड़ा का बहुत सुंदर चित्रण किया है।
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