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ग़ज़ल:पुरखार रहगुज़र है चलना सँभल सँभल के......(३)

(221 2122 221 2122 )


पुरखार रहगुज़र है चलना सँभल सँभल के
आसाँ नहीं निभाना मत लेना इश्क़ हल्के
***
सच कह रहे हैं हमने देखा बहुत ज़माना
रह जाएँ आग में सब आशिक़ कहीं न जल के
***
दम तोड़ती यहाँ पर आई नज़र है हसरत
देखे हैं लुटते अरमाँ हर पल मचल मचल के
***
जो चाहते हैं अपना चैन-ओ-सुकून खोना
मैदाँ में वो ही आये हाथों में थूक मल के
***
अक़्सर यहाँ पे पड़ता मिर्गी के जैसा दौरा
कटती है रात सारी करवट बदल बदल के
***
अख़लाक़ सीखने का जब होश तक नहीं है
समझेंगे क्या मोहब्बत जो छोकरे हैं कल के
***
है हिज़्र की मुसीबत आह-ओ-फ़ुग़ाँ की आफ़त
आसार भी नहीं है पक्के किसी भी फल के
***
गर जिस्म तक ही जाना बर्बाद मत करो वक़्त
नापाक वो मोहब्बत जिसमें न रूह झलके
***
पाने की सोचना मत खोने की रहगुज़र है
समझो 'तुरंत' मिलना कुछ भी न इस पे चल के
***
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी
(मौलिक और अप्रकाशित )

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 27, 2018 at 10:22pm

भाई - बृजेश कुमार 'ब्रज' आपकी स्नेहिल सराहना के लिए दिल से आभार | 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 27, 2018 at 7:29pm

वाह आदरणीय बेहतरीन ग़ज़ल कही है..

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 26, 2018 at 2:42pm
Comment by Samar kabeer on December 26, 2018 at 2:19pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

आपने अपनी पिछली ग़ज़ल पर मेरी टिप्पणी का उत्तर नहीं दिया?

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 25, 2018 at 2:22pm

भाई ,Surkhab Bashar साहेब ,आदाब ,पहले तो आपकी दाद और तहसीन के लिए दिल से शुक्रगुज़ार हूँ | दूसरी बात यह कहना चाहता हूँ आपका नाम बहुत खूबसूरत है |  यह तखल्लुस है या नाम मालूम नहीं | तीसरे जिस शेर का आपने जिक्र किया है उसमें तक़ाबुले रदीफ़ नहीं है ,अभी तक जो मेरी समझ में आया है ,उर्दू में उच्चारण के हिसाब से मात्रा तय होती है तो "है " का उच्चारण "ह " जैसा होता है इसलिए तक़ाबुले रदीफ़ नहीं होगा क्योंकि इसमें (के ) जैसा (ए ) स्वर नहीं निकलता इसलिए दोनों तरह का तक़ाबुले रदीफ़ नहीं है | 

Comment by Surkhab Bashar on December 25, 2018 at 11:51am
  • आ. गिरधारी सिंह तुरंत जी ग़ज़ल  बहुत ख़ूब है 
  •  दाद के साथ बधाई स्वीकार करें
  •  अख़लाक़ सीखने का जब....... 
  • इस शेर में तक़ाबुल रदीफ आगई है

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