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"आहरण या चीर-हरण" (लघुकथा)

"आज न छोड़ेंगे, सोते हुओं को चेतायेंगे!"
"घोर अन्धकार है महाराज! सुझावों, चेतावनियों, प्रतिबंधों और घोषणाओं को चुनौती देकर पटाखों, आतिशबाज़ियों और वैद्युत-सजावटों से ही इनका राष्ट्र दहक रहा है, चमक रहा है! इतना तो आपके दहन-आयोजन के आडंबर मेंं भी नहीं होता!"
"...'आडंबर'..! मत कहो मेरे नई सदी के 'सक्रीय अस्तित्व' और 'सांकेतिक स्मरण' को 'आडंबर'..! मेरे दशानन की बदलती भूमिकाएं नहीं मालूम क्या तुम्हें?" नई सदी के नवीन दस मुखौटों वाले विशाल शरीर में अपनी आत्मा लिए दीपावली पर भारत-भ्रमण कर रहे रावण ने अपने साथ आये दास को डपटते हुए कहा।
"यहां तो केवल 'भव्य श्रीराम-मंदिर' की ही मांग है, 'भव्य श्रीरावण-मंदिर' की नहीं! आपके पुतलों के 'भव्य दहन-आयोजन' के कुछ दिनों बाद यहां राम-नाम की धूम ही धूम है महाराज!"
"नाम धूमिल करने वालों के द्वारा कैसी राम-धुन... और कैसी राम-धूम? असली आडंबर तो यही है! मानव का मानव के साथ छल! धन का बल, बस!" दहाड़ते हुए रावण बोला, लेकिन पटाखों की तेज़ आवाज़ों में केवल 'दास' के कान खड़े हो गए।
"तो अब आपका मंतव्य क्या है महाराज?"
"जब इस राष्ट्र के प्रमुख लोग ही अपने राम का नाम भुना कर उनकी छवि धूमिल करने पर तुले हुए हैं, तो 'अबकी बार मेरा भी परेशान 'राम' पर 'प्रहार'... मैं अब राम का 'आहरण' करूंगा... दुर्योधन की भांति अबकी 'राम' का ही 'चीर-हरण' करूंगा।"
"उससे क्या होगा?"
"सुना है कि इस महा-भारत में अब महिलाओं का युग है! ले जाऊंगा 'राम' को... और...! महिलायें चीख पड़ेंगी! महिलाएं ही पुरुषों को सही मार्ग प्रशस्त करेंगी न!"
"ठीक है महाराज! वैसे भी आधुनिक दानवी-मानवों के बीच श्रीराम और आप जैसे विद्वान रावण का यहां क्या काम! किंतु महाराज चीर-हरण आपको शोभा नहीं देगा; वो तो उनके छद्म-भक्त कई बार कर चुके! आप तो यहां से 'राम' का 'आहरण' कर लीजिए, राम-नाम को बचा लीजिए और अपनी नई परिमार्जित और असली 'रामराज्य' वाली लंका में उनका महाभिषेक कराइये महाराज!" यह कहते हुए वह दास उस रावण के चरणों पर जब गिरा, तो उसे उठा कर सीने से लगा कर रावण बोला - "चलो वापस...परमात्मा से यही अपील करते हैं!"


(मौलिक व प्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 5, 2019 at 7:40pm

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