For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मंदिर की घंटी :हरि प्रकाश दुबे

सुदूर पहाड़ी पर एक प्रसिध्द ‘माँ दुर्गा’ का एक मन्दिर था, जिसका संचालन एक ट्रस्ट के हाथ में था। उसमे पुजारी, आरती करने वाला, प्रसाद वितरण करने वाला, मंदिर की सफाई करने वाला, मंदिर की आरती के समय घंटी बजाने वाला आदि सभी लोग ट्रस्ट द्वारा दी जाने वाली दक्षिणा एवम भोजन पर रखे गए थे।

आरती खत्म हो जाने के बाद जहाँ अन्य लोग चढ़ावे को इक्कठा कर कोष में जमा कराने में तत्पर रहते थे वही घंटी बजाने वाला ‘घनश्याम’ आरती के समय भाव के साथ इतना भावविभोर हो जाता था कि होश में ही नही रहता था।

मन्दिर में आने वाले सभी व्यक्ति ‘माँ दुर्गाके साथ साथघनश्यामके भाव के भी दर्शन करते थे, एवम माँ के प्रति उसके समर्पण की भी प्रसंशा करते थे।

एक दिन किसी आपसी विवाद की वजह से मन्दिर के ट्रस्टी बदल गए और नये व्यवस्थापकों ने ऐसा आदेश  जारी किया कि हमारे मन्दिर में  काम करने वाले सब लोग पढ़े लिखे होने चाहियें जो पढ़े लिखे नही है उन्हें निकाल दिया जाएगा।

यह सुनकर ‘घनश्याम’ अवाक रह गया और उसने ने कहा, "साहेब भले ही मैं पढ़ा लिखा नही हुँ,परन्तु इस कार्य में मेरा भाव भगवान से जुड़ा हुआ है देखो !"

ट्रस्टी ने कहा,"सुन लोघनश्याम’ ! तुम पढ़े लिखे नही हो, इसलिए तुम्हे नहीं रख पायेंगे पर हाँ तुम आज तक का हिसाब ले लो अब से तुम नोकरी पर मत आना !"

दूसरे दिन मन्दिर में कुछ पढ़े लिखे नये लोगो को नियुक्त कर दिया गया, परन्तु आरती में आये लोगो को अब पहले जैसा आनंद नहीं आता था ‘घनश्यामकी सभी को कमी महसूस होती थी जो सब कुछ छोड़करमाँ दुर्गाके भरोसे पर पास ही अपने गावँ चला गया था।

तभी एक बुजुर्ग महिला कुछ लोगों के साथ मिलकर ‘घनश्यामके घर गए और उससे कहाघनश्यामतुम कल से मन्दिर आओ ।

घनश्यामने मना कर दिया और बोला, "मैं आऊंगा तो पुजारी को लगेगा नौकरी माँगने आया हूँ इसलिए नहीं आ सकता हूँ ।”

उस बुजुर्ग महिला तथा उनके साथ आये हुए लोगो ने एक उपाय बताया कि 'मन्दिर के बराबर में तुम्हारे लिए एक दुकान खोल देते है, तुम वहाँ बैठना और आरती के समय घंटी बजाने आ जाना, फिर कोई नही कहेगा तुमको नौकरी की जरूरत है।" पर मेरे पास पैसे नहीं है, वह कहाँ से आयेंगे?-घनश्यामने पूछा?

उसकी चिंता तुम मत करो वो व्यवस्था हम कर देंगें-सभी ने सामूहिक रूप से कहा ।

माँ दुर्गाकी इच्छा मानकर उसने मन्दिर के सामने प्रसाद की पहली दुकान शुरू की वो इतनी चली कि एक दुकान से दो –चार और अब वो सात दुकान का स्वामी था ।

समय बीतता गया, मंदिर की प्रसिद्धी के साथ ही उसकी भी प्रसिद्धी भी बढ़ने लगी पर अब भी वो नियमित घंटी बजाने आता था ।

इधर ट्रस्ट को मन्दिर विस्तार के लिए दान की जरूरत आन पड़ी थी, मन्दिर के नये प्रबंधक को विचार आया क्यों न उस दुकान मालिक से बात करके देखते है, यही सोचकर वह ‘घनश्याम’ के पास गया साथ ही मंदिर विस्तार का खर्चा उसे बताया ।

‘घनश्याम’ ने कोई सवाल किये बिना एक खाली चेक ट्रस्टी के हाथ में दे दिया और कहा एक लाख का  चैक भर लो प्रबंधक ने चैक भरा पर उसको वापस कर दिया और कहा सिग्नेचर तो बाकी है?

घनश्यामने कहा मुझे सिग्नेचर करना नही आता है लाओ अंगुठा मार देता हुँ, "वही चलेगा।”

ये सुनकर प्रबंधक चौक गया !

तभी ‘घनश्यामहँसते हुए बोला-

"भाई, मैं पढ़ा लिखा होता तो इस मन्दिर में घंटी थोड़ी बजा रहा होता। "

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 543

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neelam Upadhyaya on November 5, 2018 at 2:38pm

आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी, अच्छी रचना की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। 

Comment by Samar kabeer on November 2, 2018 at 3:32pm

जनाब हरिप्रकाश दुबे जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on November 2, 2018 at 10:31am

हार्दिक बधाई आदरणीय हरि प्रकाश जी। बेहतरीन संदेश पूर्ण रचना।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service