अरकान:
फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फेलुन
क़ैद मैं, कैसे दायरे में हूँ
कौन है जिसके सिलसिले में हूँ
आप तो मीठी नींद सोते हैं
और मैं सदियों से रतजगे में हूँ
अब नहीं कोई फ़िक्र दुनिया की
चैन से अपने मक़बरे में हूँ
मुझको मंज़िल मिली नहीं अब तक
एक मुद्दत से रास्ते में हूँ
उनकी यादों को भूलना है मुझे
यूँ मैं 'संतोष'मैकदे में हूँ
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
~संतोष
Comment
बहुत आभार आ.बलराम जी
आदरणीय संतोष जी, बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है।
दिली मुबारक़बाद क़ुबूल फ़रमाएं।
सादर।
// और मैं सदियों से रतजगे में हूँ//
जनाब निलेश जी,इस मिसरे को मैंने ऐसे पढ़ा था:-
'उर में सदियों से रतजगे में हूँ'
//
उनकी यादों को भूलना है मुझे
यूँ मैं 'संतोष'मैकदे में हूँ//
इस शैर के सानी मिसरे में "यूँ" का अर्थ 'इसलिये' है, इसलिए मैं संतुष्ट हूँ ।
आदरणीय भाई श्री नीलेश जी ,स्वागत , बहुत शुक्रिया !! आप के बताये विचारों से ग़ज़ल को और बेहतर करने का प्रयत्न करूँगा ! किन्तु मेरे व्यक्तिगत मतानुसार पटल अथवा इस पवित्र पाठशाला के सभी वरिष्ठ एवं गुरु तुल्य व्यक्तित्व अपने शिक्षा देने का कार्य हम प्रशिक्षुओं को बखूबी दे रहे हैं!
आदरणीय लक्ष्मण धामी साहब धन्यवाद !!
आदरणीय श्री बृज कुमार जी बहुत शुक्रिया !!
आदरणीय श्रीआरिफ़ साहिब बहुत बहुत शुक्रिया !!
आदरणीय श्री अजय साहब , बहुत बहुत धन्यवाद !
आदरणीय श्री समर साहब प्रणाम , बहुत बहुत धन्यवाद ! आपका आशीर्वाद सदा अपेक्षित !!
आ. संतोष दादा,
अच्छी ग़ज़ल हुई है
और मैं सदियों से रतजगे में हूँ इस मिसरे की बह्र जाँच लें
मैं कि सदियों से रतजगे में हूँ
यूँ मैं 'संतोष'मैकदे में हूँ.. यहाँ यूँ कि जगह फिर या सो अधिक बेहतर रहता...
आ. समर सर, अजय सर... आप ने यहाँ भी बह्र की त्रुटी इंगित नहीं की..
क्या मंच सिर्फ दाद देकर निकल जाने वाला ग्रुप बन गया है?
सादर
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