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दो कवितायें मुक्तछंद

मौसम

धूप की तपन

विदा होने को तैयार

नन्ही कोपलों के फूटने का

पौधों को इंतजार

छांह को ढोते बादल

अब बूंदें चुराएँगे

इस कालचक्र के बीच

मौसम बदल जाएंगे ।

 

सीप

 

चमकते मोती

पलते सीप के सीने में

पिरोये जाकर धागों में

शोभा बढ़ाते गले की शान से

छुपाकर रखा मोती को

दर्द सजाकर सीने में

छाती चीरकर दिया उपहार

विस्मृत रहा फिर भी

हमेशा ही सीप

 

... मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on October 6, 2018 at 1:21pm

आदरणीया नीलम जी बहुत बहुत आकर्षक पंक्तियाँ सृजित करके मंत्रमुग्ध कर दिया बधाई हो 

Comment by Shyam Narain Verma on October 6, 2018 at 1:15pm

आदरणीया नीलम उपाध्याय जी , सुंदर भाव से संजोयी रचना पर बधाई स्वीकारें , सादर.

Comment by Samar kabeer on October 6, 2018 at 12:26pm

मुहतरमा नीलम उपाध्याय जी आदाब, दोनों कविताएं अच्छी हैं,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

विस्मृत रहा फिर भी

हमेशा ही सीप'

'सीप' स्त्रीलिंग है, देखें ।

Comment by narendrasinh chauhan on October 6, 2018 at 9:40am

बहोत खुब 

कृपया ध्यान दे...

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