For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ६०

जनाब बशीर बद्र साहब की ग़ज़ल "ख़ुदा मुझको ऐसी ख़ुदाई न दे" की ज़मीन पे लिखी ये ग़ज़ल. 

122 122 122 12

ख़ुदा ग़र तू ग़म से रिहाई न दे
तो साँसों की मीठी दवाई न दे

भले अपनी सारी ख़ुदाई न दे
किसी को भी माँ की जुदाई न दे

मैं मर जाऊँ मिट जाऊँ हो जाऊँ ख़ाक़
मगर मुझको ख़ू ए गदाई न दे

तू रख सब असागिर को दुख से अलग
तू कोई भी ग़म इज्तिमाई न दे

निसाबे अमल से तू कर सब हिसाब
तू ज़िल्लत कोई बिन बुलाई न दे

तू ख़ुद भी है मख़फ़ी हमारी नज़र
हैं नाबीने हम रहनुमाई न दे

शबे वस्ल ग़र तू दे सकता नहीं
ख्यालों में उनसे जुदाई न दे

कहीं कुछ नया हो, कहीं कुछ अलग
तू हस्ती ये लिक्खी लिखाई न दे

अगरचे ख़मोशी में है तू निहाँ
मुझे तू मगर लबकुशाई न दे

है कारेमजाज़ी में शिरकत तेरी
गुनहगार है तू सफ़ाई न दे

ख़ुदा है, तू ख़ालिक़ है संसार का
तू बंदों को अपनी दुहाई न दे

ये माना कि खिस्सत से जी लूँगा मैं
मगर क्या कि कुछ भी कमाई न दे

मेरा दुख किसी पे भी ज़ाहिर न हो
ग़मे दिल को जलवानुमाई न दे

न जूता न चप्पल न मरहम नसीब
मेरे पाँव को तो बिवाई न दे

मैं ग़ैरों के दुख में पिघलता रहूँ
मेरे दिल में इतनी भलाई न दे

है जी चाहता है कि बेख़ुद रहूँ
सुनाई न दे कुछ, दिखाई न दे

मैं ख़ुद ढूँढ लूँगा ठिकाना मेरा
मुझे रहगुज़र आज़माई न दे

है आरिज़ पे तेरे निशाने रक़ीब
मुझे कुछ न कह, कुछ सफ़ाई न दे

उन्हें कर तू पर्दानशीनी अता
अगर राज़ को पारसाई न दे

और आख़िर में मज़ाहिया-

जो हर लम्हा एफ़बी में डूबी रहे
किसी को भी ऐसी लुगाई न दे

~राज़ नवादवी 

"मौलिक एवं अप्रकाशित" 

Views: 529

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on July 8, 2018 at 2:08pm

जी हाँ ।

Comment by राज़ नवादवी on July 8, 2018 at 12:01am

आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब. ग़ज़ल में आपकी शिरकत का तहेदिल से शुक्रिया. आपकी इस्लाह का ह्रदय से आभार. आपके कहे के मुताबिक ये शेर हटा दूँ? 

कहीं कुछ नया हो, कहीं कुछ अलग
तू हस्ती ये लिक्खी लिखाई न दे 8

है कारेमजाज़ी में शिरकत तेरी
गुनहगार है तू सफ़ाई न दे 10

ख़ुदा है, तू ख़ालिक़ है संसार का
तू बंदों को अपनी दुहाई न दे 11

ये माना कि खिस्सत से जी लूँगा मैं 
मगर क्या कि कुछ भी कमाई न दे 12

न जूता न चप्पल न मरहम नसीब
मेरे पाँव को तो बिवाई न दे 14

सादर 

 

Comment by राज़ नवादवी on July 7, 2018 at 11:57pm

आदरणीया नीलम उपाध्याय जी, आपका ह्रदय से आभार, आपकी सुखन नवाज़ी का दिल से शुक्रिया. 

Comment by Neelam Upadhyaya on July 6, 2018 at 4:17pm

आदरणीय राज नवादवी साहब , नमस्कार । बढ़िया ग़ज़ल की पेशकश के लिए मुबारकबाद । 

Comment by Samar kabeer on July 6, 2018 at 2:54pm

जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,बशीर बद्र साहिब की ज़मीन में अच्छी ग़ज़ल कही है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।

कुछ अशआर के दोनों मिसरों में 'तू' शब्द खटकता है, उनमें एक मिसरे से 'तू' शब्द निकालने का प्रयास करें ।

छटे शेर में 'नाबीने' को "नाबीना" कर लें ।

8,10,11,12,14 ये अशआर भर्ती के हैं, इन्हें हटा दें ।

मज़हिया शैर भी हटा दें ।

जब तवील ग़ज़ल कहें तो अशआर के साथ नम्बर भी डाल दिया करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
24 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Tuesday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service