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जो पले हैं उसी छाया में |

माता  की ममता की तुलना  , कभी कोई कर सकता नहीं |
जग में जो खुशी माँ से मिले  ,  कोई और  दे सकता नहीं |
हर कोई माँ से ही आया ,        मां बिना कोई आया नहीं |
ये ज़िंदगी जो  माँ से मिली  , कोई   कर्ज  भर पाया नहीं |
प्रसव में  जो पीड़ा   माँ सहे , पिता उसे कहाँ बाँट पाये |
सटा कर रखे जो सीने से ,  ये मजा शिशु को  कहाँ आये | 
अपने गीले में ही सोकर   , सदा शिशु  सीने पर  सुलाती |
बच्चे को अपना  दूध पिला  , वो  अपने भूखे सो जाती |
दिन रात कहीं सेवा करके , शिशु को सदा  ख़ुशी देती है |
कभी सदा खुद ही  ग़म सहकर, शिशु का हर ग़म हर लेती है |   
सोते जागते हर खाब  में , रात दिन शिशु की ख़ुशी चाहे | 
हर पल वो यहीं  मांगे दुआ , औलाद मेरा बढे आगे |
माँ अब गिरी पड़ी जमीन पर ,  औलाद झूमता मस्ती में |
बहू बच्चे पास ना आयें , यहीं शोर है हर बस्ती में |
अनपढ़ हो या हो पढ़ा लिखा , भूल गए अपने माया में |
वर्मा डाल को गिरा समझें , जो पले हैं  उसी छाया में |  
श्याम नारायण वर्मा 
(मौलिक व अप्रकाशित)

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