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मचल उठा जो दिल जवां ख़ुदा न ख़्वास्ता (ग़ज़ल 'राज')

1212  1212  1212  12

बहक गया अगर समां ख़ुदा न ख़्वास्ता 
बिखर गया अगर जहाँ ख़ुदा न ख़्वास्ता

चिराग़ हम लिये खड़े यही तो सोचकर 
भटक गया जो कारवाँ ख़ुदा न ख़्वास्ता 

उठाना मत सनम निकाब मुझको देखकर 
मचल उठा जो दिल जवां ख़ुदा न ख़्वास्ता

पता चमन का तुम उसे न देना दोस्तों 
इधर मुड़ी अगर खिजाँ ख़ुदा न ख़्वास्ता

किया क्या इंतज़ाम आग को बुझाने का 
अगर उठा कहीं धुआँ ख़ुदा न ख़्वास्ता

उड़ी हुई मेरी है नींद इस ख़याल से 
बढ़ी जो अपनी दूरियां ख़ुदा न ख़्वास्ता

मिलेगा ख़ास इक सुकूं मेरे रफ़ीक को 
गिरे मेरा जो ये मकां ख़ुदा न ख़्वास्ता 

राजेश कुमारी राज 

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Comment by gumnaam pithoragarhi on June 9, 2018 at 3:04pm

वाह खूब ....बस एक शेर में  ....बुझाने का--ख़्वास्ता ....खूबसूरत शेर वाह....

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 9, 2018 at 2:57pm

आ. राजेश दी, सादर अभिवादन । सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

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