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'ग़ज़ल कहने जो बैठोगे तो नानी याद आएगी'

(चौथे शैर में तक़ाबल-ए-रदीफ़ नज़र अंदाज़ करे)

नसीहत जो बुज़ुर्गों की न मानी याद आएगी

हमें ता उम्र उनकी सरगरानी याद आएगी

मियाँ मश्क़-ए-सुख़न कर लो नहीं ये खेल बच्चों का

ग़ज़ल कहने जो बैठोगे तो नानी याद आएगी

ज़माने भर की आसाइश के जब सामाँ बहम होंगे

तुझे माँ-बाप की क्या जाँ फ़िशानी याद आएगी

जुड़ी होंगी मज़ालिम की बहुत सी दास्तानें भी

हवेली गाँव की जब ख़ानदानी याद आएगी

क़वाफ़ी जब भी आएँगे ग़ज़ल में ज़िन्दगानी के

मुझे तब "नूर"की वो 'कूड़ेदानी' याद आएगी

----

सरगरानी--नाराज़गी

मश्क़-ए-सुख़न--ग़ज़ल अभ्यास

आसाइश--आराम

जाँ फ़िशानी--मिहनत

मज़ालिम--अत्याचार

"नूर"--निलेश 'नूर'

---

'समर कबीर'

मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by नाथ सोनांचली on May 7, 2018 at 2:50pm

आद0 आली जनाब समर कबीर साहब सादर प्रणाम। बहुत बेहतरीन ग़ज़ल आपके हवाले से पढ़ने को मिली।

मियाँ मश्क़-ए-सुख़न कर लो नहीं ये खेल बच्चों का

ग़ज़ल कहने जो बैठोगे तो नानी याद आएगी

एकदम दुरुस्त बात कही आपने। 

क़वाफ़ी जब भी आएँगे ग़ज़ल में ज़िन्दगानी के

मुझे तब "नूर"की वो 'कूड़ेदानी' याद आएगी

वाह नूर भाई जी की कुड़ेदानी का क्या कहना,  

खानदानी का क्या कहना। एक बेहतरीन ग़ज़ल पर दिल खोल के बधाई आपको। लाजबाब

Comment by TEJ VEER SINGH on May 7, 2018 at 12:59pm

हार्दिक बधाई आदरणीय समर क़बीर साहब जी।आदाब। लाज़वाब गज़ल।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2018 at 12:54pm

हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा 
क्या समर सर आप भी....
आनी काफिया था तो मुझे लपेट लिया... ई काफिया होता तो ताज़ी ताज़ी ग़ज़लें पेश करने वाले उस्तादों को भी लपेट लेते ..
ये ज़मीन पक्की पकड रखी है आपने .. दो तीन बंगले तो बन ही गए हैं शायद अबतक ..
ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई 
सादर 

Comment by दिनेश कुमार on May 7, 2018 at 12:48pm

बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई आदरणीय समर साहब। वाह वाह। मत्ला विशेष हुआ है।

और आख़िरी का जवाब नहीं। मैंने भी आपकी और उनकी वो चर्चा का बख़ूबी आनन्द लिया था। 

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