For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँ की बहू (लघुकथा)

रवि और गीता फर्स्ट ईयर से ही एक दूसरे को पसंद करते थे अतः उनमे दोस्ती हो गई और बाद में प्यार परवान चढ़ा। फाइनल ईयर तक आते आते उन दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया। रवि को गीता में उसका भावी जीवन साथी दिखता था। रवि ने गीता को अपने दिल के मंदिर में बैठा लिया था। वो तो सपने भी देखने लगा कि गीता ही उसकी और उसके मां बाप की देखभाल करेगी और उसकी गरीबी उन दोनों के बीच नही आएगी।
रवि मिडिल क्लास फैमिली से था और गीता एक फैक्ट्री के मालिक की बेटी थी।
फाइनल ईयर के एग्जाम शुरू होने वाले थे। रवि एक दिन गीता को अपने माँ बाप से मिलाने ले गया। गीता वहाँ खुश दिखी। रवि की माँ गीता से बोली-'भगवान तुम्हारी हर इच्छा पूरी करे और जो तुम्हारे लिये अच्छा हो वो तुम्हे दे।'
रवि ने भी गीता से उसको, उसके माँ बाप से मिलवाने को कहा।
दो दिन बीत गए थे गीता कॉलेज भी नही आई और उसने रवि का फ़ोन भी नही उठाया।
तीसरे दिन गीता आई तो वह रवि से कटने लगी। रवि ने उससे बात करने की कोशिश की लेकिन उसने उसको अनदेखा कर दिया।
कॉलेज खत्म होने के समय रवि ने गीता को पकड़ा और उससे इस बेरुखी का कारण पूछा। गीता ने अपना हाथ छुड़ाया और बोली-'रवि तुम्हारा घर मेरे लायक नही है कल मुझे एक अच्छे खानदान का लड़का देखने आया था उसको मेने शादी की हां कह दी है।'
रवि के नीचे से जमीन खिसक गई उसको गीता की आवाज़ दूर से आती सुनाई दे रही थी।
रवि का तो दिल टूट गया था। उसे गीता की बेवफाई पर गुस्सा भी आ रहा था। रवि ने गुस्से में गीता के एक थप्पड़ मारा तो गीता गुस्से में वहां से चली गई।
रवि अपने आप को अकेला महसूस कर रहा था। उसके दिमाग मे एक ही बात थी कि गीता ने अमीर लड़का मिल जाने की वजह से उसे छोड़ा था।
किसी तरह रवि ने एग्जाम दिए और अपने घर आ गया।
उधर गीता का उसी दिन से बुरा हाल था उसने भी एग्जाम बड़ी मुश्किल से दिए।
गीता रो रही थी और कहे जा रही थी कि रवि मुझे माफ़ कर देना। जिस दिन में तुम्हारे घर गई थी तो तुम्हारी माँ ने कहा था कि, बचपन मे ही उन्होंने तुम्हारी शादी साहूकार की एक हाथ से अपाहिज लड़की से तय कर दी थी क्योंकि साहूकार ने तुम्हारे पिता का सारा कर्ज माफ कर दिया था और यदि मेरी शादी तुम से हो जाती तो साहूकार तुम्हारा घर और खेत बेचकर अपना कर्ज ले लेता और तुम्हारा परिवार सड़क पर आ जाता। मेरे पापा भी हमारी शादी के पक्ष में नही थे और हमें भाग कर ही शादी करनी पड़ती इसलिय मुझसे शादी होने पर भी में तुम्हे अपने पापा से कोई सहायता नही दिला सकती थी। अतः मैनें तुमसे झूठ बोला और हां में बेवफा नही हूँ ।
रवि आज भी गीता को बेवफा समझता है और उसकी माँ उसे देवी।

मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 463

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by babitagupta on May 4, 2018 at 1:30pm

आदरणीय सर जी,लघु कथा के माध्यम से इस बात को दर्शाया हैं कि हर महिला स्वार्थी नही होती,बल्कि विवाह जैसी रीति को महत्व देती हैं फिर चाहे वो गठ्बन्धन बचपन में ही क्यों ना हुआ हो.बहुत ही बढिया .रचना प्रस्तुती के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा.

Comment by Samar kabeer on May 1, 2018 at 6:04pm

जनाब राजेश जी आदाब,अच्छी लघुकथा है, बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Sanjay Shukla जी, बहुत आभार आपका। ज़र्रा-नवाज़ी का शुक्रिया।"
19 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Euphonic Amit जी, बहुत आभार आपका। ज़र्रा-नवाज़ी का शुक्रिया।"
19 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Dinesh Kumar जी, अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई है। "
21 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Richa यादव जी, अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई। इस्लाह से बेहतर हो जाएगी ग़ज़ल। "
26 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' ji, अच्छा प्रयास हुआ ग़ज़ल का। बधाई आपको। "
29 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Chetan Prakash ji, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास रहा। सुझावों से निखार जाएगी ग़ज़ल। बधाई। "
34 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, ख़ूब ग़ज़ल रही, बधाई आपको। "
38 minutes ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय संजय जी। सादर अभिवादन स्वीकार करें। ग़ज़ल तक आने व प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार"
57 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Sanjay जी, अच्छा प्रयास रहा, बधाई आपको।"
59 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Aazi ji, अच्छी ग़ज़ल रही, बधाई।  सुझाव भी ख़ूब। ग़ज़ल में निखार आएगा। "
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ बधाई स्वीकारें बाक़ी गुणीजनों की इस्लाह से और निखर जायेगी"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Mahendra Kumar ji, अच्छी ग़ज़ल रही। बधाई आपको।"
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service