For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

महफ़िल में नशा प्यार का लाना ही नहीं था

221 1221 1221 122

********************

महफ़िल में नशा प्यार का लाना ही नहीं था ।
तो नग़मा मुहब्बत का सुनाना ही नहीं था ।

रौशन किया जो हक़ से तुझे रोज़ ही दिल में,
वो तेरी निगाहों का निशाना ही नहीं था ।

कर-कर के भलाई यहाँ रुस्वाई मिले तो,
ऐसा तुझे किरदार निभाना ही नहीं था ।

है डर तुझे हो जाएगा फिर दिल पे वो क़ाबिज़,
सँग उसके तुझे जश्न मनाना ही नहीं था।

होते हैं अगर कत्ल यहाँ हिन्दू मुसलमाँ, 
मंदिर किसी मस्ज़िद को बनाना ही नही था।

डर डूब के मरने का तेरे दिल में था इतना,
तो इश्क़ के दरिया में नहाना ही नहीं था ।

*****

मौलिक व अप्रकाशित

हर्ष महाजन

Views: 958

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on March 19, 2018 at 11:02am

आ0 नीलेश जी आदाब ।

एक और मतला  लाया हूँ सर ज़रा नज़र डालिये ।

"वो तेरी निग़ाहों का निशाना ही नहीं था,
तो उसकी मुहब्बत को तू जाना ही नहीं था ।"

सादर ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 19, 2018 at 8:19am

आ. हर्ष जी.
एक शब्द मूल रखेंगे तो आसानी होगी जैसे आना, जाना, ज़माना, पाना, निशाना आदि 
सादर 

Comment by Harash Mahajan on March 19, 2018 at 8:09am

आ0 नीलेश जी आदाब ।

आपके मार्गदर्शन में फिर से कोशिश जारी है।

सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 18, 2018 at 9:52pm

आ. हर्ष जी 
निभ और चल में भी वही दिक्कत है ..
ये देखिये ....
.
वादा  ये प्यार का जो निभाना ही नहीं   था 
दिल के कहे में आप को आना ही नहीं था 
सादर 

Comment by Harash Mahajan on March 18, 2018 at 9:26pm

आ0 नीलेश जी औऱ आ0 समर जी इस ग़ज़ल में मतला तब्दील किया है । आप गुणीजनों से अनुरोध । मार्गदर्शन कीजिये ।

गर मुझसे मुहब्बत को निभाना ही नहीं था,
तो तीर निगाहों का चलाना ही नहीं था ।

कर-कर के भलाई यहाँ रुस्वाई मिले तो,
ऐसा तुझे किरदार निभाना ही नहीं था ।

है डर तुझे हो जाएगा फिर दिल पे वो क़ाबिज़,
सँग उसके तुझे जश्न मनाना ही नहीं था।

होते हैं अगर कत्ल यहाँ हिन्दू मुसलमाँ,
मंदिर किसी मस्ज़िद को बनाना ही नही था।

डर डूब के मरने का तेरे दिल में था इतना,
तो इश्क़ के दरिया में नहाना ही नहीं था ।

Comment by Harash Mahajan on March 18, 2018 at 5:07pm

कृति पर आपके आगमन और उत्साहवर्धन का तहे दिल से बहुत-बहुत हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ साहब ।

सादर ।

Comment by Mohammed Arif on March 18, 2018 at 11:19am

आदरणीय हर्ष महाजन जी आदाब,

                             बहुत ही अच्छी ग़ज़ल का प्रयास । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय दे चुके हैंं ।

Comment by Harash Mahajan on March 16, 2018 at 3:20pm

आदरणीय समर जी आदाब । सर आभारी हूँ । आपकी व्यस्तता को देख कर मैं समझ सकता हूँ सर । आपके मार्गदर्शन से ओ बी ओ में बहुत कुछ सीखा है और आगे भी सिलसिला जारी ही रखना चाहूँगा । प्रोत्साहन भरे शब्दों के किये ममनून हूँ ।

सादर !

Comment by Harash Mahajan on March 16, 2018 at 3:12pm

आदरनीय नीलेश जी आदाब । सबसे पहले तो आपकी आमद का बहुत बहुत शुक्रिया । ग़ज़ल को सराहने के लिये सर आभार । सर पहले शेर में मुहब्बत के उतार चढ़ाव को लेकर जाम को तरज़ीह दी । और ये भी सच है जो हम कहना चाहते हैं वो सीधे पढ़ने वाले तक न पहुंचे तो कमी तो है ।

मार्गदर्शन के लिए आपका तहे दिल से धन्यवाद करना चाहूंगा । 

सर ये दोनों ही शेर दुबारा कहने की कोशिश करता हूँ ।साथ बनाये रखियेगा ।

सादर ।

Comment by Samar kabeer on March 16, 2018 at 11:54am

जनाब हर्ष महाजन जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

मैंने जब आपकी ये ग़ज़ल देखी थी तो सिर्फ़ बह्र के हिसाब से देखी थी,क़वाफ़ी भी 'ठाना" "माना' के हिसाब से ही देखे थे,क्योंकि ये ग़ज़ल 'क़ैसर' साहब की ज़मीन में है और जहां तक मुझे याद है उनकी ग़ज़ल में भी कुछ ऐसे ही थे,इसलिये क़वाफ़ी पर ध्यान नहीं दे सका, इसका खेद है, वैसे जनाब निलेश जी की बात सही है,संज्ञान लें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
3 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सीमा के हर कपाट को - (गजल)-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२कानों से  देख  दुनिया  को  चुप्पी से बोलना आँखों को किसने सीखा है दिल से…See More
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीया प्राची दीदी जी, आपको नज़्म पसंद आई, जानकर खुशी हुई। इस प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक…"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में हैं। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आभार "
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय, यह द्वितीय प्रस्तुति भी बहुत अच्छी लगी, बधाई आपको ।"
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह आदरणीय वाह, पर्यावरण पर केंद्रित बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई ।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन कुंडलियाँ छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service