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मेरा तन- मन उचाट क्यूँ है? इस पूरे जहान से ,

चिड़ियों ने भी समेट लिये , घोंसले मेरे मकान से ।!


इंसानों में खुदगर्जी हो गयी ,इस कदर हावी ,

जड़ भी कहने लगे ,हम अच्छे है इस इन्सान से ।!

फिजां की इन सरसराती हवावों में है ,बू साजिश की

, इनकी दोस्ती से है कहीं अच्छी ,दुश्मनी तूफ़ान की ।!

कितना भी अफ़सोस कर लो, इस जमाने नीयत पर ,

कितने बेगुनाहों को गुजारा है ,इसने अपने इम्तिहान से ।!

‘कमलेश ‘अब भी बहुत कुछ है यहाँ, बाकी कहने को ,

पहले अपनी धरती संवारो ,फिर शिकवा करो आसमान से

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Comment by baban pandey on July 8, 2010 at 10:46am
इनकी दोस्ती से है कहीं अच्छी ,दुश्मनी तूफ़ान की ।!

कितना भी अफ़सोस कर लो, इस जमाने नीयत पर ,
...har cheej se dar lagta hai ....dhamaka

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 7, 2010 at 12:08pm
सही है कमलेश भैया ,
पहले अपनी धरती संवारो ,फिर शिकवा करो आसमान से .............

बहुत खूब , क्या अंदाजे बया है, जबरदस्त,

कृपया ध्यान दे...

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