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गीत-क्रंदन कर उठे हैं भावना के द्वार पर-बृजेश कुमार 'ब्रज'

सभी पंक्तियों का मात्रा भार
2122 2122   2122 212 के क्रम में

गीत क्रंदन कर उठे हैं
भावना के द्वार पर

वेदना में याचना के
शब्द गीले हो गए
यातना के काफिलों से
पथ सजीले हो गए
आँसुओं की बेबसी में
दर्द की मनुहार पर
गीत क्रंदन कर उठे हैं
भावना के द्वार पर

आदमी में आदमी सा
क्या बचा है सोचिये?
पीर क्या है मुफलिसों की?
ये कभी तो पूछिये
हो रही फाकाकशी हर
तीज पर त्यौहार पर
गीत क्रंदन कर उठे हैं
भावना के द्वार पर

दीप जलते हैं कहीं पर
दिल कहीं जलते रहे
पतझरों की गोद में भी
फूल थे पलते रहे
अब कली सहमी हुई है
अश्क़ से शृंगार कर
गीत क्रंदन कर उठे हैं
भावना के द्वार पर
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 22, 2017 at 5:45pm
आदरणीय डा.गोपाल नारायण जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन वंदन है।पे का प्रयोग सिर्फ इसलिए की पर की पुनरावृत्ति न हो हालाँकि पर किया जा सकता है।आपका सुझाव सर्वथा उचित है..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 22, 2017 at 5:40pm
आदरणीय लक्ष्मण लडीवाला जी रचना सुन्दर शब्दों में उत्साहवर्धन के लिए आपको प्रणाम करता हूँ..सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 22, 2017 at 12:09pm

आ०  वृजेश  जी ,सही शब्द - फाकाकशी है . खड़ी  बोली कविता में 'पे' का प्रयोग क्यों ? ' तीज पर त्योहार् पर ' सही होता . इसी प्रकार दीप जलते हैं कहीं पर  भी सही होता . पे और पर सममात्रिक  हैं फिर पर क्यों नहीं . आपकी सम्पूर्ण कविता भावों  से जगमग है . मैं ऐसी ही कविताये  पसंद करता हूँ . आपको  बहुत बहुत बधाई . .

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 22, 2017 at 10:53am

गीत क्रंदन कर उठे हैं
भावना के द्वार पर | --- अति सुंदर और मार्मिक गीत रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री ब्रिजेश कुमार 'बृज' जी 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 20, 2017 at 3:58pm
आदरणीय सलीम साहब आपको भी दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं..आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 20, 2017 at 3:55pm
आदरणीय डा.साहब आपका हार्दिक धन्यवाद दीप पर्व की बधाई..आदरणीय मेरे हिसाब से सही शब्द शृंगार ही है..लेकिन श्रृंगार का प्रयोग ज्यादा दिखाई देता है..ये टाइपिंग मिस्टेक है मैं इसे दूर करता हूँ..सादर
Comment by SALIM RAZA REWA on October 20, 2017 at 3:20pm
आदरणीय बृजेश जी,
दीपोत्सव पर इस सुन्दर गीत प्रस्तुति के बधाईयाँ और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये.
सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 20, 2017 at 12:47pm
आदरणीय भाई ब्रज जी बहुत ही शानदार मनभावन गीत लिखा है आपने इस शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई। मुझे थोडा संशय श्रृंगार की शृंगार लिखा जाता है बहुत पहले इस पर कभी चर्चा हुयी थी। मैं गलत भी ही सकता हूँ सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 20, 2017 at 9:12am
आदरणीय सौरभ सर आपकी टिप्पड़ी से बड़ी प्रसन्नता हुई..ये कभी तो पूछिये बिलकुल किया जा सकता है..लिखते समय दोनों ही विकल्प ध्यान में थे..आपका हार्दिक धन्यवाद

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 19, 2017 at 11:54pm

इस स्तरीय प्रयास केलिए हार्दिक बधाइयां ! आप गीतों पर निरंतर अभ्यास करते हैं, आदरणीय 

शुभेच्छाएँ. 

एक बात : 

हाल क्या है मुफलिसों का?  भी कभी तो पूछिये .. इसे यों अवश्य कर सकते हैं - हाल क्या है मुफलिसों का? ये कभी तो पूछिये

सादर 

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