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हुस्न को ......संतोष

अरकान:-फाइलुन मफ़ाईलुन

हुस्न को छुपा कर रख
तू इसे बचा कर रख

अक्स है मेरा इनमें
आँखों को झुका कर रख

इश्क़ है अगर तुझको
आरज़ू दबा कर रख

ज़िन्दगी का मारा हूँ
सीने से लगा कर रख

रौशनी मिले सबको
इक दिया जला कर रख
~संतोष
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by SALIM RAZA REWA on October 19, 2017 at 9:42am
आ. ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई.
Comment by santosh khirwadkar on October 17, 2017 at 7:02pm

ह्रदय से आभर आदरणीय आरिफ साहब , मैं अवश्य ही आप के इस आदेश का पालन करूँगा !! 

Comment by santosh khirwadkar on October 17, 2017 at 6:59pm

प्रणाम आदरणीय समर साहब , तहेदिल से शुक्रिया !!

Comment by Samar kabeer on October 17, 2017 at 12:40pm
जनाब संतोष जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mohammed Arif on October 17, 2017 at 7:45am
रौशनी मिले सबको
इक दिया जला कर रख । बहुत ही उम्दा शे'र ।
शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद आदरणीय संतोष खिरवड़कर जी ।
नोट:-कितना अच्छा हो यदि आप जैसे ग़ज़गो साहित्य की अन्य विधाओं में अपनी सृजनशीलता का परिचय देने वालों को भी अपनी टिप्पणियों से पोषित करें ताकि उनका भी उत्साहवर्धन हो सकें ।

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