For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहर - 2122 2122 2122 212

एक तितली का चमन मे आना जाना हो गया .....
देख ..उसको एक गुल यारों दिवाना हो गया ....

उनकी हर तस्वीर मेरे दिल मे धुँधली हो गई
उनको .. देखें दोस्तों जो इक ज़माना हो गया ....

देख मुझको वो मुसलसल मुस्कुराती ही रही
क्या.... सही मेरी निग़ाहों का निशाना हो गया ....

एक बच्चा खा रहा था कूड़े से जूठन , उसे
देखकर ....मेरे लबों से दूर दाना हो गया ..

जी , शहद जितनी मुझे हर पल मिठास आने लगी
अपना रिश्ता लगता है यारों पुराना हो गया .....

मैंने .....तो बस चाह की उनके हसीं दीदार की ,
रुख से उनका उस ही पल पर्दा हटाना हो गया ....

अपने छोटे मुख से जब उसने कहीं बातें बड़ी ,
हर कुई महफ़िल में फिर उसका दिवाना हो गया ....

मैंने .... जब प्रमाण माँगा उनके होने का यहाँ ,
पत्थरों का फिर निग़ाहों को बहाना हो गया .....

मौलिक और अप्रकाशित ...

पंकजोम " प्रेम ".

Views: 887

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by पंकजोम " प्रेम " on September 20, 2017 at 8:23pm
जी आ0 समर दादा ...... मैं ध्यान रखूँगा आपके आशिर्वाद का दिल से शुक्रगुज़ार हूँ
Comment by Samar kabeer on September 20, 2017 at 2:20pm
जनाब पंकजोम"प्रेम"जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
जनाब निलेश जी की बातों पर ध्यान दें ।
Comment by पंकजोम " प्रेम " on September 19, 2017 at 7:01pm
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सलीम भाई जी .....
Comment by पंकजोम " प्रेम " on September 19, 2017 at 7:00pm
जी नीलेश दादा .... आपके आशिर्वाद से और निखार आ गया ग़ज़ल में ...... बेहद शुक्रगुज़ार हूँ , आपके आशिर्वाद का ....
Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 19, 2017 at 1:02pm

आ. पंकजोम प्रेम जी,
आपको मंच पर  पहली बार पढने का अवसर मिला है.
ग़ज़ल सिर्फ शब्दों का संयोजन अथवा भावों की मालिका नहीं है. ग़ज़ल में भी बनते कोशिश व्याकरण के नियमों जैसे कर्ता ने कर्म को..आदि का ख़याल रखा जाय तो मिसरे भी बेहतर  होते हैं    और ग़ज़लियत भी बढती है ..
इस ग़ज़ल में एक दो उदाहरण देता हूँ..
.
१)
एक तितली का चमन में आना जाना  हो गया .....

देखकर  यारों उसे इक गुल दिवाना हो गया  यारों दीवाना और गुल दीवाना हो गया में बारीक़ अंतर है लेकिन   प्रभाव आप स्वयं देख सकते हैं..
२) 
जी , शहद जितनी मुझे मीठी मिठास आने लगी.... मीठी मिठास क्या होती है.. मिठास पर्याप्त है ..
रिश्ता शायद लगता है अपना पुराना हो गया ..... लगता है ..में अपने आप शायद वाला भाव समाहित है. अपना पुराना हो गया को रिश्ता पुराना हो गया में बाँधिए ..
प्रयास करते  रहिये..शुभ भाव 

Comment by SALIM RAZA REWA on September 19, 2017 at 10:55am
भाई प्रेम जी,
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service