For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- कब किसी से यहाँ मुहब्बत की

कब किसी से यहाँ मुहब्बत की.  

जब भी' की आपने सियासत की.

 

प्यार  पूजा  सदा  ही हमने तो,

आपने कब इसकी इबादत की

 

जुल्म  धरती ने सह लिए सारे,

आसमां  ने मगर बगावत की

 

आदमी आदमी  से  जलता है,

कुछ कमी है यहाँ जहानत की

 

ताव  दे  मूँछ  पर  सभी  बैठे,

कौन  बातें  करे  शराफत की.

 

फूल  भी चुभ रहे उन्हें अब तो,

बात क्या अब करें नजाकत की.

 

''मौलिक एवं अप्रकाशित'' 

Views: 700

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 28, 2017 at 1:15pm

आदरणीय समर कबीर जी आपकी सूक्ष्म दृष्टि और सदाशयता को सादर नमन 

Comment by Samar kabeer on July 28, 2017 at 11:02am
छटे शैर के ऊला मिसरे में 'विखरता'को "बिखरता"कर लें ,बाक़ी उम्दा है ।
Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 28, 2017 at 10:50am

आदरणीय  Samar kabeer जी आपका दिल से शुक्रिया , इसी तरह मार्गदर्शन करते रहें सादर 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 28, 2017 at 10:49am

आदरणीय रवि शुक्ल जी अब देखें ठीक हुआ क्या 

मापनी २१२२ १२ १२ २२/२११

 

कब किसी से यहाँ मुहब्बत की.  

आपने  तो  सदा  सियासत की.

 

जुल्म सहती रही धरा कितने,

आसमां ने कहाँ इनायत की

 

मूँछ  पर ताव  दे सभी  बैठे,

कौन बातें करेगा उल्फत की.

 

फूल भी  चुभ  रहे उन्हें अब तो,

क्या हो’ तारीफ़ इस नजाकत की.

 

आदमी  आदमी  से  जलता है,

कुछ कमी है यहाँ जहानत की.

 

यूँ  विखरता नहीं  कोई रिश्ता,

है जरूरत जरा हिफाजत की.

 

माँ के’ चरणों की धूल मिल जाए,

फिर  तमन्ना  हमें न  जन्नत की.

 

Comment by Ravi Shukla on July 26, 2017 at 1:23pm

आदरणीय बसंत सर आपने हमारे कहे को मान दिया उसके लिये आभार आदरणीय समर साहब पहले ही आपकी गजल पर आ चुके है शहादत किस अर्थ में आपने लिया है ये सार्थक प्रश्‍न है । अगर आप माने तो इस शेर में तकाबुले रदीफ भी हो गया है । आपके भाव के थोड़ा सा आस पास इनायत शब्‍दआ सकता है ( आसमां ने कहाँ इनायत की ) वैसे इस पर ढेरा सारे काफिये आपको मिल जाएंगे । सादर

Comment by Samar kabeer on July 26, 2017 at 11:16am
ग़ज़ल अछि हो गई है :-
'आसमाँ ने कहाँ शहादत की'
'शहादत'शब्द के दो अर्थ हैं,एक तो धर्म या वतन पर जान क़ुर्बान करना,दूसरा किसी बात की गवाही देना, आपका मिसरा इन अर्थों में नहीं है,इसे बदलने का प्रयास करें ।
Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 26, 2017 at 9:04am

आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी, आदरणीय रवि शुक्ला जी, आदरणीय समर कबीर जी, आदरणीय मोहित मिश्रा जी  आप सबके स्नेह का आभारी  हूँ , आपके सुझावों के उपरान्त और थोड़ी मेहनत की है पुनः आपके समक्ष प्रस्तुत है 

कब किसी से यहाँ मुहब्बत की.  

जब भी’ की आपने सियासत की.

 

जुल्म सहती रही सदा धरती,

आसमां ने कहाँ शहादत की

 

ताव  दे मूँछ  पर सभी  बैठे,

कौन बातें करेगा उल्फत की.

 

फूल भी  चुभ  रहे उन्हें अब तो,

क्या हो’ तारीफ़ इस नजाकत की.

 

आदमी  आदमी  से  जलता है,

कुछ कमी है यहाँ जहानत की

 

यूँ  विखरता नहीं  कोई रिश्ता,

है जरूरत जरा  हिफाजत की,

 

माँ के’ चरणों की धूल मिल जाए,

फिर  तमन्ना  हमें  न जन्नत की.

 

Comment by Samar kabeer on July 25, 2017 at 3:12pm
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
जनाब रवि जी की बातों पर ध्यान दें ।
Comment by Ravi Shukla on July 25, 2017 at 12:14pm

आदरणीय बसंत सर अच्‍छी गजल कही आपने शेर दर शेर मुबारक बाद पेश करते है । शीघ्रता में आप शायद इसका अरकान लिखना भूल गये है । अशआर की बात करें तो दूसरा शेर कुछ अस्‍पष्‍ट लगा है मआनी तक नहीं पहुँच पा रहे है । और हमने इसके अरकान के अनुसार सानी मिसरे पर तकतीअ की तो

आपने कब /2122 इसकी 22 / इबा12 / दत की 22 बहर भी नहीं मिल पा रही है अलिफ वस्‍ल भी करें तो आपने 21 2 कबिसकी 122 ये वज्न आ रहा है मिसरे का । देखियेगा

चौथा और आखिरी शेर खास तौर पर पसंद आया उसके लिये अलग से दाद हाजिर है ।

Comment by Mohammed Arif on July 25, 2017 at 12:12pm
आदरणीय बसंत कुमार जी आदाब, बेहतरीन ग़ज़ल का आगाज़ । हर शे'र लाजवाब ।.शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी अमूल्य राय से अवगत करवाएँगे ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कुण्डलिया छंद : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"दोहे के दो पद लिए, रोला के पद चार। कुंडलिया का छंद तब, पाता है आकार। पाता है आकार, छंद शब्दों में…"
14 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion चौपाई : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"सोलह सोलह भार जमाते ।चौपाई का छंद बनाते।। त्रिकल त्रिकल का जोड़ मिलाते। दो कल चौकाल साथ बिठाते।। दो…"
36 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion रोला छंद : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"आदरणीय सौरभ सर, रोला छंद विधान से एक बार फिर साक्षात्कार कर रहा हूं। पढ़कर रिवीजन हो गया। दोहा…"
1 hour ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
21 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सीमा के हर कपाट को - (गजल)-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२कानों से  देख  दुनिया  को  चुप्पी से बोलना आँखों को किसने सीखा है दिल से…See More
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीया प्राची दीदी जी, आपको नज़्म पसंद आई, जानकर खुशी हुई। इस प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में हैं। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आभार "
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय, यह द्वितीय प्रस्तुति भी बहुत अच्छी लगी, बधाई आपको ।"
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह आदरणीय वाह, पर्यावरण पर केंद्रित बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई ।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service