For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

निकलते अब पहाड़ों के सुरों से दर्द के नाले (ग़ज़ल 'राज'

१२२२   १२२२   १२२२   १२२२

कहीं मलबा कहीं पत्थर कहीं मकड़ी के हैं जाले

कहानी गाँव  की कहते घरों के आज ये ताले  

 

किया बर्बाद मौसम ने छुड़ाया गाँव घर आँगन

यहाँ दिन रात रिसते हैं दिलों में गम के ये छाले

 

भटकते शह्र में फिरते मिले दो वक्त की रोटी

सिसकते गाँव के चूल्हे तड़पते दीप के आले*

 

कहाँ संगीत झरनों के परिंदों की कहाँ चहकन 

निकलते अब  पहाड़ों के सुरों से  दर्द के नाले

 

लुटा सुख चैन सब अपना कहें किससे कहाँ जाएं 

उधर वो  चीखते पर्वत इधर चुप ये जहाँ  वाले

 

 कहीं सौगात खुशियों की मिले उनसे किसानों को 

 सहम जाते पहाड़ों पर घिरें बादल जहाँ काले

 

फकत  मजबूरियाँ अपनी कलेजों पर धरे पत्थर

उसी को छोड़ना पड़ता हमें जिस गोद ने पाले

आले*=दीपक रखने का स्थान ,नाले=आहें ,पाले=पालन पोषण किया 

----मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 952

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on July 12, 2017 at 9:37pm

आ. राजेश मैम, अच्छी ग़ज़ल हुई है. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. आ. समर सर की बातों से मैं भी पूर्णतः सहमत हूँ. उनकी टिप्पणी से मुझे भी बहुत कुछ सीखने को मिला. इसके लिए मैं उनको हृदय से धन्यवाद देता हूँ. सादर.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 10, 2017 at 9:32pm

आ० दीदी . बड़े बड़े लोग बहुत कुछ कह गए . आखिरी  शेर से मैं भी मायूस हूँ आपका  अभिप्राय तो समझ मे आता है पर ----हमें जिस गोद ने पाले-----आपको भी खटकता होगा  शायद -----ससम्मान .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 10, 2017 at 8:56am

आद० गिरिराज जी ,गजल पर उपस्थिति व् बधाई के लिए दिल से आभारी हूँ बहुत बहुत शुक्रिया | मुझे कुछ शब्दों के विषय में लिख देना चाहिए था वो मेरी गलती हुई है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 10, 2017 at 8:54am

आद० समर भाई जी ,आपकी बातें शत प्रतिशत सही हैं आपके अंदाज में कहे मिसरे और परिष्कृत हो गए हैं हमें एक आयोजन में तुरत फुरत पहाड़ों के दर्द  पर कुछ लिखने के लिए दिया गया था ये ग़ज़ल उस वक़्त का परिणाम है इसे आशु भी कह सकते हैं इसमें आपकी  इस्स्लाह के अनुसार सुधार कर लूँगी मुझे कुछ शब्दों के अर्थ पहले लिख देने चाहिए थे ये मेरी गलती रही है | मार्ग दर्शन के लिए तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ भाई जी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 10, 2017 at 8:37am

आदरनीया राजेश की , ग़ज़ल ले किये आपको हार्दिक बधाइयाँ .. आ, समर भाई जी की सलाह उचित है , गौर कीजियेगा । आँचलिक शब्द का निषेध नही है पर उसका अर्थ दे दिया जाना ज़रूरी होता है क्यों कि ये शब्द किसी अँचल विशेष मे प्रचलित होते हैं । वैसे हमारे छत्तीस गढ मे भी आला प्रचलित शब्द है ।

Comment by Samar kabeer on July 9, 2017 at 10:13pm
बहना, ग़ज़ल का मुआमला ये है कि ग़ज़ल का अर्थ पाठक अपनी सोच के हिसाब से निकालता है,शाइर हर पाठक के सामने अशआर की तशरीह करने नहीं जा सकता,ये जो आपका स्पष्टीकरण है, इससे आप तो मुतमइन हो सकती हैं लेकिन पाठक नहीं,आपकी ग़ज़ल का मतला इसी भाव के साथ मैं कहता तो यूँ कहता:-
'कहीं मलबा,कहीं पत्थर,कहीं मकड़ी के हैं जाले
लगे हैं गाँव के हर घर में बोलो किसलिये ताले'

दूसरा शैर यूँ होता:-
'किया बर्बाद मौसम ने छुड़ाया गाँव, घर,आंगन
हमारी दास्ताँ कहते हैं देखो दिल के ये छाले'
ये मैंने अभी इसी वक़्त कहे हैं,शिल्प की दृष्टि से इन्हें और बहतर किया जा सकता हैं लेकिन फिलहाल मिसाल के लिये पेश कर दिए ताकि आप मेरे कहे के मर्म को समझ सकें,मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि अभी आप देहरादून के आयोजन को लेकर बहुत मसरूफ़ होंगी इसलिये ग़ज़ल पर जो समय देना चाहिए था वो नहीं दे सकीं ।
अब रहा आंचलिक शब्द,तो इसके बारे में सिर्फ़ इतना अर्ज़ करूँगा कि ग़ज़ल का मिज़ाज इनके इस्तेमाल की इजाज़त नहीं देता,ये छन्द में ही अच्छे लगते हैं,और अगर इनका इस्तेमाल करना ही पड़ जाये तो इसका बहतर तरीक़ा ये है कि इसका इज़हार पहले ही कर दिया जाये,उम्मीद है आप मेरी बात समझ रही होंगी ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 9, 2017 at 7:41pm

आद० समर भाई जी ,मुझे अफ़सोस है की ये ग़ज़ल आपको संतुष्ट नहीं कर सकी फिर भी अपनी बात स्पष्ट करुँगी 

यहाँ गाँव के ताले से मेरा मतलब पूरे गाँव में ताले अर्थात लॉक से है घरों में लॉक लगाकर पहाड़ों से  नीचे भाग आये हैं लोग वो ताले गाँव के तन्हाई की कहानी लिख रहे हैं | गोद ने पाले का मतलब जिस गोद ने पालन पोषण किया पहाड़ों की गोद |दीप के आले -मतलब गाँव  में दीवार में जहाँ दीप रखते हैं वहां जो जगह बनाते हैं उसे आले कहते हैं ये एक आंचलिक शब्द है इनके अलावा इस काफिये में मुझे और उपयुक्त शब्द नहीं मिल सके बहुत साधारण बोल चल वाले शब्द ही इस्तेमाल कर  पाई हूँ 

यहाँ दिन रात रिसते हैं सभी के दर्द के छाले----पहाड़ों से घर बार छोड़ ने पर जो दिल पर घाव हुए हैं उन्हें छालों का बिम्ब देकर कहने की कोशिश की है  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 9, 2017 at 7:34pm

आद० रवि भैया ,आपका बहुत बहुत शुक्रिया | यहाँ गाँव के ताले से मेरा मतलब पूरे गाँव में ताले अर्थात लॉक से है घरों में लॉक लगाकर पहाड़ों से  नीचे भाग आये हैं लोग वो ताले गाँव के तन्हाई की कहानी लिख रहे हैं | गोद ने पाले का मतलब जिस गोद ने पालन पोषण किया पहाड़ों की गोद |दीप के आले -मतलब गाँव  में दीवार में जहाँ दीप रखते हैं वहां जो जगह बनाते हैं उसे आले कहते हैं ये एक आंचलिक शब्द है | मेरे ख्याल से तो कोई शब्द एसा नहीं जो अपनी बात स्पष्ट नहीं कर रहा हो | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 9, 2017 at 7:28pm

बृजेश कुमार जी आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Samar kabeer on July 9, 2017 at 7:14pm
बहन राजेश कुमारी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
मतले के सानी मिसरे में 'ताले'क़ाफ़िया भर्ती का है ।
दूसरे शैर में 'दर्द के छाले'कैसे होते हैं ?
तीसरे शैर में 'डीप के आले' क्या मतलब ?
चौथे शैर में 'पहाड़ों के सुर'कैसे होते हैं ?
पांचवें शैर में 'पर्वत'भी इसी जहाँ का हिस्सा तो हैं ।
छटा शैर शिल्प की दृष्टि से बहुत कमज़ोर है ।
आख़री शैर भी शिल्प की दृष्टि से बहुत कमज़ोर है ।
कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि ये ग़ज़ल आपने जल्दबाज़ी में कही है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
19 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी  वाह !! सुंदर सरल सुझाव "
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी सादर अभिवादन बहुत धन्यवाद आपका आपने समय दिया आपने जिन त्रुटियों को…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी सादर. प्रदत्त चित्र पर आपने सरसी छंद रचने का सुन्दर प्रयास किया है. कुछ…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार घुसपैठ की ज्वलंत समस्या पर आपने अपने…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
""जोड़-तोड़कर बनवा लेते, सारे परिचय-पत्र".......इस तरह कर लें तो बेहतर होगा आदरणीय अखिलेश…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"    सरसी छंद * हाथों वोटर कार्ड लिए हैं, लम्बी लगा कतार। खड़े हुए  मतदाता सारे, चुनने…"
3 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी हार्दिक आभार धन्यवाद , उचित सुझाव एवं सरसी छंद की प्रशंसा के लिए। १.... व्याकरण…"
4 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द लोकतंत्र के रक्षक हम ही, देते हरदम वोट नेता ससुर की इक उधेड़बुन, कब हो लूट खसोट हम ना…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
22 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service