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122 122 122 122
तेरे अक्स के ख्वाब आते रहेंगे ।
मुहब्बत की रस्मे निभाते रहेंगे ।।

ये जुल्फों के साये में तेरे तबस्सुम ।
मुझे उम्र भर तक सताते रहेंगे ।।

नज़ारों से लूटा गया हूँ बहुत मैं ।
मगर फिक्र दिल से उडाते रहेंगे ।।

न ठुकरा सकोगी हमारी मुहब्बत ।
यकीनन तुझे याद आते रहेंगे ।।

बड़ी आरजू थी मुलाकात होगी ।
खबर क्या थी चिलमन गिराते रहेंगे ।।

तेरी खुशबुओं को बिखेरा करें वो ।
हवाओं से चर्चा चलाते रहेंगे ।।

करो जुल्म बेशक मगर याद रखना ।
अदाओ पे हम मुस्कुराते रहेंगे ।।

लगी कातिलाना हैं कमसिन निगाहें ।
कहाँ तक ये दामन बचाते रहेंगे ।।

खुदा बनके आयी है फ़ितरत तुम्हारी ।
तेरे दर पे फेरे लगाते रहेंगे ।।

तू मेरी ग़ज़ल है बहुत कुछ है लिखना ।
कलम हुस्न पर हम चलाते रहेंगे ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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Comment by Naveen Mani Tripathi on June 13, 2017 at 10:19am
आदरणीय भाई गुरु प्रीत सिंह जी बिल्कुल सही फरमाया। ईता दोष हो गया है । मूल शब्द निभ और दिख है जो हम काफ़िया ही नही है । पोस्ट आडिट कर दिया हूँ ।
Comment by Gurpreet Singh jammu on June 13, 2017 at 9:52am

वाह वाह आदरणीय नवीन जी,, वाक़ई इश्क़ के रंग में डूबी बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने ,,
मतले में काफिआ निभाते और दिखाते में कहीं इता दोष तो नहीं है?? इस दोष को मैं अभी तक स्पष्ट तौर पर समझ नहीं पाया हूँ,, इसलिए अपनी जानकारी के लिए ये जानना चाहता हूँ

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 13, 2017 at 8:49am

वाह वाह वाह , इश्क में डूबी हुई शानदार गजल 

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