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***बदलते सुर***(लघुकथा)राहिला

"ये लो दो चेक ,बैंक में जमा कर देना"
दफ्तर के लिए निकल रहे अनुराग के हाथ में चेक थमाते हुए वह बोली।"कहाँ से आये?"
"भेजी दी दो रचनाएँ ,पुरुस्कृत हुयी तो मिले।"
"वाह ..,क्या बात है।,मुबारक हो भई!फिर तो पार्टी बनती है।घर बैठे कमाने लगीं तुम तो!"पति ने कुछ गर्वित होकर कहा, तो उसके होंठों पर फीकी सी मुस्कान तैर गयी।
आज उसने अपने शौक पर खर्च किये लम्हों की परिवार को पहली क़िस्त अदा की थी।
रात में जैसे ही कमरे में अनुराग आये उसने सकपका कर ,झगड़े की जड़ को किनारे रख दिया।
"अरे लिख लो, लिख लो मोबाईल क्यों रख दिया।आखिर तुम्हें भी तो कुछ वक़्त मिलना चाहिए अपने लिए ।सारा दिन तो घर के कामों में व्यस्त रहती हो।
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 16, 2017 at 8:49pm

रचनाकारों के दर्द को खूब लिखा है आपने आदरणीया राहिला जी | बढ़िया कथा हुई है बधाई स्वीकारें |

Comment by Rahila on May 29, 2017 at 2:20pm
बहुत आभार आदरणीय उस्मानी साहब!
Comment by Rahila on May 29, 2017 at 2:20pm
आदरणीय आरिफ़ साहब!बहुत शुक्रिया ।आप सही हैं मेरा ध्यान इस बार इस बात से चूक गया।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 27, 2017 at 11:36am
रचनाकारों के अनुभवों व दर्द को उभारती एक और बढ़िया रचना के लिए सादर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आदरणीय राहिला जी। जनाब मोहम्मद आरिफ साहब के सुझाव पर ग़ौर फ़रमाइयेगा।
Comment by Mohammed Arif on May 27, 2017 at 10:09am
आदरणीया राहिला जी आदाब,लघुकथा क्षण में घटित होने वाली घटना होती है । आपकी यह लघुकथा दो काल खंड को प्रदरर्शित कर रही है--(1)दफ्तर के लिए जाते हुए पत्नी अनुराग को चैक थमा रही है । यह सुबह का समय है । (2)जब रात में अनुराग कमरे में प्रवेश करता हैऔर सकपकाकर झगड़े की जड़ को किनारे कर दिया । अब आप ही बताइए दो अलग-अलग काल खंड हुए है या नहीं?यहाँ मेरा मक़सद सिर्फ़ काल खंड की ओर इशारा करना है । अन्यथा न लें । बाक़ी बधाई स्वीकार करें ।

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