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ग्रीष्म के दोहे

सूरज शोले छोड़ता ,पशु भी ढूँढे छाँव ।
दर खिड़की सब बंद है ,सन्नाटे में गाँव ।।

भीषण गरमी पड़ रही,पशु -मानव हैरान ।
भू जल भी घटने लगा, साँसत में है जान ।।

पारा बढ़ता जा रहा, सूख रहे तालाब ।
देखो गाँव महानगर , हालत हुई खराब ।।

पत्ते झुलसे पेड़ पर ,नीम बबूल उदास ।
पशु किसान सबको लगी, पानी की अब आस ।।

.
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment

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Comment by Mohammed Arif on May 15, 2017 at 5:44pm
बहुत-बहुत आभार आदरणीय सतविंद्र कुमार जी । लेखन सार्थक हुआ ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 15, 2017 at 5:31pm
गर्मी से बेहाल थे,करते खूब बखान
दोहे सुन्दर आपके,ठंडक दे श्रीमान।
हार्दिक बधाई आदरणीय मो. आरिफ जी।
Comment by Mohammed Arif on May 15, 2017 at 11:40am
बहुत-बहुत आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी जी । लेखन सार्थक हुआ ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 15, 2017 at 9:40am

आदरणीय आरिफ भाई , अच्छे दोहे रचे हैं .. हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Mohammed Arif on May 14, 2017 at 7:46am
बहुत-बहुत आभार आदरणीय बृजेश कुमार जी ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 13, 2017 at 10:27pm
वाह आदरणीय बहुत ही सुन्दर सटीक दोहों का सृजन किया है..हार्दिक बधाई
Comment by Mohammed Arif on May 12, 2017 at 10:57pm
दोहों की सराहना और हौसला अफज़ाई का बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय अनुराग जी ।
Comment by Mohammed Arif on May 12, 2017 at 8:08am
बहुत-बहुत आभार आदरणीय सुरेंद्र नाथ सिंह जी ।
Comment by नाथ सोनांचली on May 12, 2017 at 5:42am
जनाब मोहम्मद आरिफ साहिब सादर अभिवादन, ग्रीष्म कालीन अच्छे दोहे सृजित हुए हैं, बधाई आपको।
Comment by Mohammed Arif on May 11, 2017 at 6:37pm
बहुत-बहुत आभार आदरणीय तस्दीक़ अहमद साहब ।

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