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सैनिक हुए शहीद फिर, और हुआ उपहास।
अपनी ही सरकार से, रही न कोई आस।।1।।

इसमें कोई शक नहीं, हम हैं निंदा वीर।
अगली निंदा के लिए, दिल्ली का प्राचीर।।2।।

कोई पत्थर मारता, कोई काटे शीश।
विजयी भव का क्यों नहीं, दे देते आशीष।।3।।

समय वार्ता का नहीं, होने दें यलगार।
बिना मार करता नहीं, गलती वह स्वीकार।।4।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 7, 2017 at 3:49pm
वाह आदरणीय बहुत ही सुन्दर और सटीक दोहे हुए..सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2017 at 7:57pm

आदरनीय हरि ओम भाई , हालते हाज़रा पर अच्छे दोहे रचे , आपको हृदय से बधाइयाँ ।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 4, 2017 at 11:16am

सामायिक और सुंदर दोहे | इस दोहें को देखे आदरणीय =

समय वार्ता का नहीं, होने दें यलगार |। === शायद वार्ता में आपने 5 मात्राएँ ली है | कुछ विद्वजन इसमें 4 और कुछ 5 मात्राएँ मानते है 
बिना मार करता नहीं, गलती वह स्वीकार। 

Comment by रामबली गुप्ता on May 3, 2017 at 7:46pm
सभी दोहे अच्छे, शिल्पबद्ध और प्रासंगिक हैं आद0 श्रीवास्तव जी हृदय से बधाई स्वीकारें।सादर
Comment by Hariom Shrivastava on May 2, 2017 at 6:35pm
आदरणीय समर कबीर जी, आपकी अमूल्य व सराहनीय प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ। इस हौसलाअफजाई हेतु हार्दिक आभार।
Comment by Samar kabeer on May 2, 2017 at 6:13pm
जनाब हरिओम श्रीवास्तव जी आदाब,बढ़िया दोहे लिखे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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