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ग़ज़ल: उसको ये समझाना है

(बह्र--22/22/22/2)
उसको ये समझाना है ,
इक दिन सबको जाना है ।

.
हँस के रोकर कैसे भी ,
जीवन क़र्ज़ चुकाना है ।

.

देखो, भटका फिरता वो ,
वापस घर तो आना है ।

.

अच्छी सच्ची राहें हैं
सबको ये बतलाना है ।

.

उसके संगी-साथी को ,
मिलकर हाथ बढ़ाना है ।

.

आशा की किरणों वाला ,
फिर से दीप जलाना है ।

.
मौलिक एवं आप्रकाशित ।

Views: 828

Comment

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Comment by Mohammed Arif on May 1, 2017 at 8:22pm
आदरणीय आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब ग़ज़ल सराहना और हौसला अफज़ाई का बहुत-बहुत शुक्रिया ।
Comment by Samar kabeer on May 1, 2017 at 7:58pm
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,दाद के साथ मुबारकबफ पेश करता हूँ ।
Comment by Sushil Sarna on May 1, 2017 at 7:05pm

उसको ये समझाना है ,
इक दिन सबको जाना है ।

जीवन के हकीकत से रूबरू कराती इस सुंदर ग़ज़ल के हार्दिक बधाई आ.मो.आरिफ साहिब।

कृपया ध्यान दे...

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