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रिश्तों में गर रार करोगे (तरही गजल)

22 22 22 22

रिश्तों में जब रार करोगे
कुनबा अपना ख्वार करोगे ||

पैर तुम्हारा बच पायेगा?
राहें गर पुर खार करोगे ||

जाति धर्म पर वोट दिया तो
मत अपना बेकार करोगे ||

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
सब इक, कब स्वीकार करोगे? ||

लोकतंत्र के तुम प्रहरी हो
भ्रष्ट तंत्र पर वार करोगे? ||

राजनीति बूढों से बोली
*हमसे कितना प्यार करोगे?* ||

धन के साथ बँटेगा दिल भी
जो ऊंची दीवार करोगे ||

चीर हरण फिर कोई करेगा
मर्यादा जो तार करोगे ||

'नाथ' कुँए में भांग पड़ी है
कैसे बेड़ा पार करोगे ||

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by नाथ सोनांचली on February 27, 2017 at 3:41pm
आदरणीय महेंद्र जी सादर आभार
Comment by नाथ सोनांचली on February 27, 2017 at 3:41pm
आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी सादर आभार।
Comment by नाथ सोनांचली on February 27, 2017 at 3:41pm
आदरणीय महेंद्र जी सादर आभार
Comment by नाथ सोनांचली on February 27, 2017 at 3:40pm
आदरणीय महेंद्र जी सादर आभार
Comment by नाथ सोनांचली on February 27, 2017 at 3:40pm
आदरणीय महेंद्र जी सादर आभार
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 26, 2017 at 10:01am
बेहतरीन आदरणीय बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई ..बधाई
Comment by Mahendra Kumar on February 25, 2017 at 8:07pm
आदरणीय सुरेन्द्र जी, लाजवाब ग़ज़ल लिखी है आपने। दिल से बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
Comment by नाथ सोनांचली on February 24, 2017 at 6:01am
आदरणीय गुरप्रीत जी सादर आभार
Comment by नाथ सोनांचली on February 24, 2017 at 6:00am
मेरे लिखे अशआर आपको पसंद आये, इसके लिए मोहम्मद आरिफ जी बहुत बहुत आभार,
Comment by नाथ सोनांचली on February 24, 2017 at 5:59am
आदरणीय जयनित मेहता जी हौसला अफजाई के लिए सादर आभार।

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