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ऐसा लगा जमी पे आसमा उतर गया

*221 2121 2121 212*

‌मेरी गली के पास से वो यूँ गुजर गया ।
ऐसा लगा जमीं पे आसमा उतर गया ।।

माना मुहब्बतों का फ़लसफ़ा अजीब है ।
शायद नज़र खराब थी वो भी उधर गया ।।

मैं रात भर सवाल पूछता रहा मगर ।
उसका जबाब हौसलों के पर क़तर गया ।।

‌तुमने दिए जो जख़्म आज तक न भर सके ।
‌जब जब किया है याद दर्द फिर उभर गया ।


इस तर्ह उस हसीन की तू पैरवी न कर ।
मतलब निकलने पर जो रब्त से मुकर गया ।।

‌तू मेरी आजमाइशों की कोशिशें न कर ।
जो आया तोड़ने वो हो के दर बदर गया ।।

‌मत राज जिंदगी का पूछिए हुजूर अब ।
कातिल भी मेरी मुस्कुराहटों पे मर गया ।।

‌जब भी गए हैं आईने के पास वो सनम ।
‌किस्मत बुलंद पा के आइना निखर गया ।।


‌ --नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Naveen Mani Tripathi on February 20, 2017 at 5:09pm
आदरणीय शिज्जू शकूर साहब आभार
Comment by Naveen Mani Tripathi on February 20, 2017 at 5:09pm
आदरणीय शिज्जू शकूर साहब आभार
Comment by Naveen Mani Tripathi on February 20, 2017 at 5:08pm
आदरणीय शिज्जू शकूर साहब आभार
Comment by Naveen Mani Tripathi on February 20, 2017 at 5:06pm
आदरणीय कबीर सर सादर आभार ।
Comment by Samar kabeer on February 20, 2017 at 1:59pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
मतले के ऊला में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखिये 'पास से' ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 20, 2017 at 12:01pm

अच्छी ग़ज़ल है जनाब नवीन मणि त्रिपाठी साहब, बहुत बहुत बधाई

बस इस तरह हसीन वाले शेर को फिर से देख लीजिएगा

कृपया ध्यान दे...

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