For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

***एक उलझन*** (लघुकथा)राहिला

"किस दुनियाँ में विचर रही हो।सोचती हो अपने बूते पर आसमान छू लोगी।यहाँ स्थापित लोगों की कृपा दृष्टि के बगैर कोई टिका है आज तक।"अंदाज में उपहास था। जिसे उसने खूब समझा।
"पता नहीं सर! सच क्या है ?बड़ी उलझन में हूँ ।एक तरफ आपकी अनुभवी सोच और दूसरी तरफ मेरी आपबीती।"
"मतलब मेरी बात पर शक है ।इतने सालों में हासिल किया है कुछ ?अब एक बार वह करो जो इन्होने किया ।"मेले में सजी नये लेखकों की पुस्तकों की ओर इशारा करते हुए ,उन्होंने अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाया।
"कहने का तात्पर्य आपका हाथ मेरे सिर पर नहीं होगा तो मंजिल मुश्किल है?"
"मेरा नहीं ,मेरे जैसे किसी का भी!बात को गलत अंदाज में मत ले जाओ ।मुझे खेद है तुम्हारे संकुचित सोच पर।"
"नहीं सर!आप मेरी बात को मेरे विचार ना जाने ।आपसे मैंने पहले ही कहा एक उलझन है इसलिए समझ नही पा रही हूँ सही क्या है?"उसके चेहरे से साफ समझ आ रहा था कि वाकई किन्हीं दो बातों के बीच फसी है।
"तो कहो,जरा मैं भी तो सुनु "अबकी उनकी बात में उपहास नहीं ,बल्कि गंभीरता थी।
" तो शुरू से सुने ,पूरी लगन से डाक्टरी की तैयारी की थी,चयन भी हो गया लेकिन अचानक अध्यापक बन गयी ।जिसका ना ही मैंने आवेदन किया,ना ही सोचा। दूसरों ने आवेदन किया और फिर उनकी इच्छा का मान रखते हुए, मैंने ना चाहते हुए भी साक्षात्कार दिया। इसके बाद अचानक मेरी मंजिल ही बदल गयी।"
"तो इससे क्या साबित हुआ?"
"नहीं ...!केवल इससे नहीं,फिर जिसे चाहा वह बस मेरा होने ही वाला था।सब कुछ सब की मर्जी से हो रहा था। अचानक वह सब नहीं हुआ। कोई और ही जीवन साथी बन गया।जिसका सोचा ही नहीं था।"
"तो कहना क्या चाह रही हो मैं अब भी नहीं समझ पाया।"
"सर !जब सब कुछ करना उसी को है जो उसने ठान रखा है तो मुझे लगता है मुझे बस अपना काम करना चाहिए ।क्या फर्क पड़ता है,दुनियां में किसी का हाथ मेरे सिर पर है या नहीं।"

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 908

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahila on February 16, 2017 at 8:04pm
बहुत शुक्रिया आदरणीय सर जी!सादर
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 11, 2017 at 4:28pm

अादरणीय राहिला जी आपने एक अच्‍छी लघ्‍ाुकथ्‍ाा रचा है आपको भूरिशः बध्‍ााई

Comment by Rahila on February 11, 2017 at 4:18pm
आदरणीय सुनील जी!तारीफ़ और हौसला अफजाई कोई आपसे सीखे ।आपकी समीक्षा अक्सर मेरे लिए मार्गदर्शक का भी काम करती है।इसलिये आपकी रचना पर उपस्थिति मेरे लिए हर्ष का विषय होती है। सादर
Comment by Rahila on February 11, 2017 at 4:13pm
आदरणीया राजेश दी!आपकी टिप्पणी का सदैव मुझे इंतेजार रहता है ।आपको रचना पसंद आई मेरा लेखन सार्थक हुआ। सादर
Comment by Rahila on February 11, 2017 at 4:10pm
बहुत शुक्रिया प्रिय नीता दी!आपकी स्नेहिल संबोधन और हौसला अफजाई मेरे लेखन में जोश भर देती है। सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 9, 2017 at 6:26pm

होता तो ये है की कर्म करने से पहले लोग फल की इच्छा करने लगते हैं  जरूरी नही फल मिले या न मिले क्यूंकि सब ऊपर वाले के हाथ में इंसान को बस कर्म पर ध्यान देना चाहिए बाकी फेंसले वो लेगा बहुत खूब नया विषय लेकर शानदार सन्देश छोड़ती हुई लघु कथा बहुत बहुत बधाई प्रिय राहिला जी 

Comment by Nita Kasar on February 9, 2017 at 4:17pm
सब पहिली से ही निर्धारित है,बस कर्म करते जाना है।दार्शनिक लहजे से लबरेज़ कथा के लिये बधाई प्रिय राहिला जी दिल से ।शुरू में लगा क्या कहना चाहती है धीरे धीरे प्याज़ की परतों की तरह कथा स्पष्ट हो गई ।
Comment by Rahila on February 9, 2017 at 2:23pm
बहुत,बहुत शुक्रिया रचना को पसंद करने और मेरा हौसला बढ़ाने के लिए आदरणीया दीदी!सादर
Comment by pratibha pande on February 9, 2017 at 1:39pm

//they also serve, who only stand and wait//  Milton  'On his blindness',   कुछ इसी तर्ज में कही ये कथा   गहरे तक असर कर रही है   बहुत खूब   बधाई प्रिय राहिला जी   

Comment by Rahila on February 9, 2017 at 12:33pm
आदाब जनाब कबीर साहब!बहुत ,बहुत शुक्रिया आपका ।आपने अपना कीमती वक़्त रचना को दिया और सराहा। सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service