For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जंबूरा (लघुकथा)राहिला

"पकड़ो,पकड़ो घेर लो इसे ,कस कर बांध दो भागने ना पाए"।अचानक हुए इस हमले ने उसकी सिट्टी पिट्टी गुम कर दी ।
"आज यहाँ,कहाँ रास्ता भूल गया यह!"
"हाँ दादा!सालों बाद दिखाई पड़ा ।जरूर कोई गरज पड़ी होगी वरना यह और यहाँ...।"
"अब हाथ आ ही गया है तो निकाल लो कसर ,डालो गले में पट्टा और नचवाओ इसे! इसने भी कोई कसर नहीं छोड़ी ..खूब इशारों पर नचवाया है हमें।आज यह करेगा हमारा मनोरंजन ।"उन्हीं में से एक दांत पीसता हुआ बोला।और फिर शुरू हुआ तमाशा।खबर पाकर दूर ,दूर से लोग इकट्ठा होने लगे,थोड़ी ही देर में अच्छी खासी भीड़ जमा हो गयी।
"बोल जंबूरे! तमाशा दिखायेगा?"यह बोल तो मात्र रस्म अदा करने भर तक सीमित रह गये,इसके बाद जो उसने स्वांग रचाना शुरू किया तो देखने वालों ने दांतों तले उँगलियाँ दबा ली। बिना कुछ सीखे पढ़ाये ऐसी नाटक नौटंकी,जैसे पेट से सीखा सिखाया जना हो। गजब का रंग जमा। सर्वत्र मानव पूर्वजों की भूरी,भूरी प्रशंसा होने लगी आखिर उन्हीं ने तो उसे पकड़ कर इस तमाशे का आयोजन किया था।
"वाह..वाह..क्या खूब करतब दिखाए..इतनी करवट बैठने वाला जम्बूरा तो पहली बार देखा,यह आम मनुष्य तो नहीं हो सकता।"जंगल के राजा ने तारीफ़ के साथ,यह जिज्ञासु प्रश्न चतुर लोमड़ की ओर देखकर उछला।
"हाँ महाराज!आपने सही पहचाना यह आम मनुष्य है भी नहीं ।यह तो इस देश का बड़ा चर्चित नेता है।"
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 947

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahila on February 7, 2017 at 7:29am
बहुत शुक्रिया आदरणीय मिश्रा जी!सादर
Comment by Rahila on February 7, 2017 at 7:28am
बहुत शुक्रिया आदरणीय मिथलेश सर जी!सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 6, 2017 at 2:05pm

आदरणीया राहिला जी इस शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ..आदरणीय मैं थोडा संशय की स्थिति में  हूँ कोई प्रश्न नहीं कर रहा हूँ बस निवेदन के साथ एक अपने संशय को रख रहा हूँ ........एक तरफ तो लोगों की भीड़ की बात ..दूसरी तरफ जंगल की बात .

..खबर पाकर दूर ,दूर से लोग इकट्ठा होने लगे,थोड़ी ही देर में अच्छी खासी भीड़ जमा हो गयी।...................जंगल के राजा ने तारीफ़ के साथ,यह जिज्ञासु प्रश्न चतुर लोमड़ की ओर देखकर उछला।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 6, 2017 at 12:46pm

आदरणीया राहिला जी, बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने. हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Rahila on February 5, 2017 at 10:21pm
आदरणीय कबीर साहब !कुछ व्यस्तता के चलते अल्पविराम लिया था ।अब पुनः हाज़िर हूँ ।आपको रचना पसंद आई बहुत आभार। सदर
Comment by Rahila on February 5, 2017 at 10:19pm
बहुत शुक्रिया आदरणीय उस्मानी जी!बहुत आभार रचना को सराहने के लिए ।सादर
Comment by Rahila on February 5, 2017 at 10:18pm
बहुत शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण सर जी!आपको रचना पसंद आई तारीफ के लिए आभार। सादर
Comment by Samar kabeer on February 4, 2017 at 8:51pm
मोहतरमा राहिला साहिबा आदाब,काफ़ी समय बाद आपकी लघुकथा के दर्शन हुए ।
अच्छी लगी आपकी लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 3, 2017 at 3:09pm
एक अंतराल के बाद पुनः आपकी शिल्पबद्ध कसी हुई कटाक्ष पूर्ण पंचपंक्ति-युक्त रचना के लिए बहुत बहुत बधाई आपको मोहतरमा राहिला जी।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2017 at 11:58am

बहुत खूब राहिला जी , हार्दिक बधाई स्वीकारें .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
5 minutes ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
9 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
17 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
17 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
20 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
20 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
20 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service