For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सहम सहम निकल रही कली कली नकाब में (ग़ज़ल 'राज')

1212  1212  1212  1212

फँसा रहे बशर सदा गुनाह ओ सवाब में

हयात झूलती सदा सराब में हुबाब में

 

बची हुई अभी तलक महक किसी गुलाब में

बता रही हैं अस्थियाँ छुपी हुई किताब में

 

जहाँ जुदा हुए कभी रुके  वहीं सवाल हैं

गुजर गई है जिन्दगी लिखूँ मैं क्या जबाब में

 

लिखें जो ताब पर ग़ज़ल सुखनवरों की बात अलग

वगरना लोग देखते हैं आग आफ़ताब में

 

फ़िज़ूल में ही अब्र ये छुपा रहा है चाँद को

जमाल हुस्न का कभी न छुप सका हिजाब में

 

नजर लगे न मनचलों की गुलसिताँ में सोचकर

सहम सहम निकल रही कली कली नकाब में 

 

उसूल  क्या है जाम का या मयकदों की शाम का

उदास हों या खुश सदा ही डूबते शराब में

--------  मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 771

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 31, 2017 at 4:31pm

आद० विजय निकोर जी, आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लेखन सफल हो गया बहुत बहुत शुक्रिया .

Comment by vijay nikore on January 30, 2017 at 6:50pm

बहुत ही खूबसूरत गज़ल लिखी है। शेर दर शेर बधाई, आदरणीया राजेश जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 25, 2017 at 8:54pm

आद० डॉ० आशुतोष मिश्राजी ,आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर मुग्ध हूँ मेरा रचनाकर्म सार्थक हो गया दिल से बहुत बहुत आभार आपका सादर .  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 25, 2017 at 8:52pm

आद० सुशील सरना जी ,आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ मेरी ग़ज़ल सार्थक हो गई आपका दिल से बहुत बहुत शुक्रिया सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 25, 2017 at 7:58pm

आद० बृजेश  कुमार बृज जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से बहुत बहुत शुक्रिया| .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 25, 2017 at 7:56pm

आद० मिथिलेश भैया ,ग़ज़ल पर आपकी शिरकत और समीक्षा से अभिभूत हूँ मेरी ग़ज़ल धन्य हुई आपकी इस्स्लाह काबिले गौर है औ लिखते लिखते न जाने ओ कैसे लिख गई ध्यान दिलाने का बहुत बहुत शुक्रिया |

Comment by Sushil Sarna on January 25, 2017 at 7:20pm

बची हुई अभी तलक महक किसी गुलाब में
बता रही हैं अस्थियाँ छुपी हुई किताब में

गज़ब आदरणीया राजेश कुमारी जी गज़ब ... कितने गहन भाव के अशआर लिखे हैं आपने। नमन आपकी लेखनी को। खूबसूरत से इन अहसासों से सजी ग़ज़ल को पेश करने की हार्दिक बधाई।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 25, 2017 at 7:13pm
सहम सहम निकल रही कली कली नकाब में ...लाजबाब...बधाइयाँ

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 25, 2017 at 6:33pm

आदरणीया राजेश दीदी, बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है आपने. शेर-दर-शेर दाद हाज़िर है-

फँसा रहे बशर सदा गुनाह ओ सवाब में
हयात झूलती सदा सराब में हुबाब में..............गुनाह-ओ-सवाब का वज्न गुनाहो-सवाब अनुसार 121-121 अथवा मात्रा उठा कर 122-121 हो सकते है परन्तु क्या गुनाह-121 ओ-1 सवाब-121 और गुनाह-121 ओ-2 सवाब-121 हो सकते हैं?
मुझे लगता है दीदी 'ओ' को 'में' 'औ' अथवा 'या' किया जाना उचित होगा.

बची हुई अभी तलक महक किसी गुलाब में
बता रही हैं अस्थियाँ छुपी हुई किताब में.............. बहुत शानदार शेर हुआ है दीदी. वाह ....एक निवेदन - गुलाब में या गुलाब की? यद्यपि यह हुस्ने-मतला है इसलिए ठीक है.

जहाँ जुदा हुए कभी रुके वहीं सवाल हैं
गुजर गई है जिन्दगी लिखूँ मैं क्या जवाब में.............. बहुत खूब

लिखें जो ताब पर ग़ज़ल सुखनवरों की बात अलग
वगरना लोग देखते हैं आग आफ़ताब में......................वाह वाह बहुत शानदार शेर ..... हासिल-ए-ग़ज़ल ..... (अलिफ़-वस्ल का जबरदस्त प्रयोग)

फ़िज़ूल में ही अब्र ये छुपा रहा है चाँद को
जमाल हुस्न का कभी न छुप सका हिजाब में.............. वाह वाह बहुत खूब .... भले ही कथ्य वही है किन्तु कहन मुग्ध कर रही है.

नजर लगे न मनचलों की गुलसिताँ में सोचकर
सहम सहम निकल रही कली कली नकाब में ........................ वाह वाह

उसूल क्या है जाम का या मयकदों की शाम का
उदास हों या खुश, सदा ही डूबते शराब में...................... सही कहा ..... शेर अपने शाब्दिक अर्थ से विस्तार पाता है तो मानव की प्रकृति विशेष पर तीखा कटाक्ष विचार करने पर मजबूर कर देता है.

इस शानदार ग़ज़ल पर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 25, 2017 at 5:58pm

आद० समर भाई जी, ग़ज़ल पर आपकी मुहर लग गई तो आश्वस्त हुई आपका दिल से बहुत बहुत शुक्रिया . 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service