For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये अश्क ...

नहीं होता
चेहरा
दुःख का
कोई

नहीं होती उम्र
मौत की
कोई

ज़िन्दगी
खुशियों का
आसमां नहीं

ग़मों की
धूप है

ज़िन्दगी की धूप में
ख़ुशी तो बस
छाया का नाम है
पल भर का सुकून है
फिर गमों की
दास्तान है

यादों के
खंज़र हैं
कुछ आँखों से
बाहर हैं
कुछ आँखों के
अंदर हैं
कह गए
बह के
और
कुछ अभी
दिल में
अनकहे समंदर हैं

कैसे
जुलाहे हैं हम
मरीचिका सी
चमकती किरणों से
सुखों की
चादर बुनते हैं
दुखों की चारपाई पे
आंसुओं की
झीनी चादर ओढ़े
अंदर ही अंदर
भीगते हैं
अकेले

ज़िन्दगी का
यही तो मुख़ौटा है
अंदर कुछ
और बाहर
कुछ होता है
समेट लेता है
अपने में
हर ग़म
जाने कैसे
दिखने में
यूँ साँसों की देहरी पे

ज़िन्दगी का 

ये अश्क 
बहुत
छोटा होता है

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 431

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on January 27, 2017 at 2:21pm

आदरणीय  Samar kabeer जी प्रस्तुति के भावों अपना आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।

Comment by Samar kabeer on January 25, 2017 at 8:48pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,आपने अश्कों की अच्छी लड़ी बनाई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sushil Sarna on January 25, 2017 at 7:31pm

आदरणीय बृजेश जी प्रस्तुति को अपने मधुर शब्दों से मान देने का शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on January 25, 2017 at 7:31pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति के भावों अपना आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 25, 2017 at 7:21pm
वाह आदरणीय बहुत सुन्दर कविता मन्त्र मुग्ध हूँ...

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 25, 2017 at 6:48pm

आदरणीय सुशील सरना सर, सुख-दुःख और जीवन के इर्द-गिर्द रची इस भावाभिव्यक्ति पर हार्दिक बधाई. सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
Monday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service